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________________ - और 'विकृतवल्ली' के टीकाकार ने कहीं से एक अन्य श्लोक निम्न प्रकार से उद्धृत किया है शिशिरो बाष्कलः शांखो वातश्चैवाश्वलायनः । पंचैते शाकलाः शिष्याः शाखा मेव प्रवर्त्तकाः ॥ इस पाठ भेद का कारण यह दीख पड़ता है कि शाकल के शिष्य चार या पांच से अधिक थे और उन्होंने सभी ने ऋग्वेद की संहिताएं तैयार की। यदि ऐसा मान लें कि शाकल ने स्वयं 'निर्भुज संहिता' तैयार की और उसके नो शिष्य- बाष्कल, आश्वलायन, शांखायन, माण्डूक, मुद्ग, गोकुल, वात्स्य, शैशिर और शिशिर ने क्रमशः प्रतृण्ण, जटा, माला, शिला, लेखा, ध्वज, दण्ड, रथ और घन पाठ भेद वाली संहिताएं तैयार की तो यह युक्तिसंगत लगता है । क्योंकि शाकल संहिता के संबंध में ऐतरेय ब्राह्मण (१४५) में लिखा मिलता है यदस्य पूर्वमपरं यदस्य यद्वस्य परं तद्वस्य पूर्वम् । अहेरिव सर्पणं शाकलस्य न विजानन्ति यतरत् परस्तात् ॥ कि शाकल संहिता का जैसा आदि है वैसा ही अन्त है और जैसा अन्त है वैसा ही आदि है । वह तो सर्प की चाल की तरह एक समान है में भेद नहीं है । अर्थात् पूर्णतया शुद्ध है । और उसमें कहीं कोई गति पातंजल महाभाष्य में ऋग्वेद की २१ शाखाएं बताई गई हैं- "एक विंशतिधा बाह वृच्यम्" जो कूर्म पुराण में भी 'एक विशति भेदेन ऋग्वेद कृतवान् पुरा कथन से कही गई हैं; किन्तु न तो २१ शाखाओं के नाम आदि मिलते हैं और नहीं उनकी प्रतियां अथवा न्यूनाधिक पाठ ही उपलब्ध होता है । वर्तमान में केवल शाकल, Parora और शांखायन शाखाओं की सम्पूर्ण या अपूर्ण पाठों वाली प्रतियां उपलब्ध हुई हैं। ५. ऋग्वेद के परिमान के सम्बन्ध में पुरातन मान्यता इस प्रकार हैऋग्वेदस्य सप्तदशाधिकमेक सहस्रं सूक्तानि । sधिक द्व े सहस्र वर्गाः । चतुः षष्ठिरध्यायाः । दश मण्डलानि । अष्टौ अष्टकानि । इत्येवं विभागः ॥ कि ऋग्वेद में १०१७ सूक्त, २००६ वर्ग, ६४ अध्याय, १० मण्डल और 5 अष्टक हैं । अलग-अलग कहें तो एक स्वरूप में ८ अष्टकों में ६४ अध्याय और १०२८ सूक्त मिलते हैं और दूसरे स्वरूप में १० मण्डलों में ८५ अनुवाक और २०२४ वर्ग हैं। मंत्रों की संख्या १०५५२ मानी गई है और बालखिल्य आदि परिशिष्ट में ९१ सूक्त और १७१६ मंत्र गिने गये हैं । संत तुकाराम की अभंग में भी ॠग्वेद की मंत्र संख्या १०५५२ दी है और सूक्त भी १०२८ बताये गये हैं ।" सन् १९३३ में प्रिंसिपल वी. के. राजवाड़े, वासुदेव शास्त्री अभ्यंकर, एन. एस. सोनटक्के और पं० टी. एस. वरदराज शर्मा के संपादकत्व में ऋग्वेद का सायणभाष्य छपना शुरू हुआ और उसकी पांच जिल्दें निकलीं । उसमें कुल १०३८१ मंत्र लिये गये हैं । बालखिल्य तथा खिल भाग के ६१ सूक्तों में ३८८ मंत्र पृथक् से दिए हैं । " तुलसी प्रज्ञ २७८
SR No.524574
Book TitleTulsi Prajna 1993 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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