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________________ 148 तुलसी प्रज्ञा वरीय को २५०० रूपये प्रतिमाह दिये जाने का प्रावधान है । अनेकांत शोधपीठ में शोधकार्य संचालित होते हैं । प्रकाशन : सम्पूर्ण आगमों के साथ यहीं से लगभग २०० ग्रंथ प्रकाशित किये जा चुके हैं । आगम शब्दकोष छप रहा है । शोध-पत्रिका : यों तो यहां ४-५ पत्रिकाएं हैं किंतु तुलसी-प्रज्ञा नामक जैन विश्वभारती त्रैमासिक-शोध-पत्रिका महत्व की है । वर्द्धमान ग्रंथागार : हमारे केन्द्रीय पुस्तकालय में लगभग २५००० से अधिक बहुमूल्य पुस्तकें और लगभग ५००० दुर्लभ प्राचीन ग्रंथों की पांडुलिपियां हैं । हम शीध्र ही पुस्तकालय के कम्प्यूटरीकरण की योजना बना रहे हैं । कई दर्जन पत्र-पत्रिकाएं भी आती हैं । प्रशिक्षण : जीवन-विज्ञान एवं प्रेक्षा-ध्यान का प्रशिक्षण हमारे पाठ्यक्रम का अनिवार्य अंग है अत: उसके लिए आवश्यक प्रयोगशाला एवं ध्यान-केन्द्र बनाये गये हैं । प्रशिक्षण का सारा कार्य तुलसी अध्यात्म नीडम में होता है । अभी तक देश एवं विदेशों में छोटे-बड़े ५०० शिविर आयोजित किये गये हैं । विदेशों में जीवन-विज्ञान के शिविर काफी लोकप्रिय सिद्ध हुए हैं । (ग) लोक शिक्षण (प्रसार-कार्य) : जैनविश्व भारती विद्यालय समाज से सदा जुड़ा रहने में अपनी सार्थकता मानता है । इसीलिए जीवन-विज्ञान एवं प्रेक्षा-ध्यान का प्रचार प्रसार इसका अनिवार्य अंग है ताकि संतुलित मानव व्यक्तित्व के निर्माण से एक अहिंसक समाज-व्यवस्था का निर्माण हो सके । इस दिशा में अनेकों कार्य किये जा रहे हैं । मुक्त एवं पत्राचार पाठ्यक्रम : हमने पिछले वर्ष से हिन्दी, अंग्रेजी, प्राकृत, जैन विद्या जीवन विज्ञान, अर्थशास्त्र एवं राजनीति शास्त्र में बी. ए. स्तर का पत्राचार एवं मुक्त पाठ्यक्रम चलाना शुरू किया है एवं इसके लिए एक स्वतंत्र निदेशालय की भी स्थापना की गई है । हमारा यह उद्धेश्य है कि हम अपने विषयों एवं विश्वविद्यालयों की सेवा अधिकाधिक लोगों के पास पहुंचायें । वर्तमान सत्र से पर्यावरण, प्रबन्धन, जनसम्पर्क एवं पुस्तकालय विज्ञान में भी स्नातक स्तर पर मुक्त पाठ्यक्रम प्रारंभ किये जाने की योजना है । मूल्य-शिक्षा या नैतिक-आध्यात्मिक : शिक्षा के केन्द्र के रूप में जैन विश्व भारती को विकसित करने की योजना है । इस पत्रिका का वर्तमान अंक मूल्य शिक्षा विषयक परिसंवाद में प्रस्तुत लेखों पर ही आधारित है । लाडनूं को इसका प्रयोग क्षेत्र बनाने का विचार चल रहा है । इसी लक्ष्य को ध्यान में रखकर हम लोग जीवन-विज्ञान के प्रचार-प्रसार में प्रयत्नशील हैं । जनवरी- मार्च 1993 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524573
Book TitleTulsi Prajna 1993 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages156
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size9 MB
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