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________________ 134 तुलसी प्रज्ञा यम-नियम को आप तब के जीवन के बुनियादी मूल्य कह सकते हैं । जो इनकी पालना करेगा वह असामाजिक कभी नहीं होगा ऐसा विश्वास करके बनाने वालों ने नियम बनाये थे ये मूल्य । भागवत् में बारह यम और बारह नियम दिए हैं । यम हैं-अहिंसा, सत्य, चोरी न करना, अनासक्ति, लज्जा, असंचय, आस्तिकता, ब्रह्मचर्य, मौन, स्थिरता, क्षमा और अभय । नियम हैं-शौच, जप, तप, दम, हवन, श्रद्धा, अतिथि सेवा, भगवत-सेवा, तीर्थयात्रा, परोपकार, सन्तोष और गुरू-सेवा । - यम-नियम में जैसे अन्तर आया वैसे जीवन मूल्यों में बाद में भी अन्तर आता रहा है । राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 ने कहा कि उन सार्वभौम शाश्वत मूल्यों का विकास होना चाहिए “जो हमें एकता की ओर ले जा सके । इन मूल्यों से धार्मिक अन्धविश्वास, कट्टरता, असहिष्णुता, हिंसा और भाग्यवाद का अन्त करने में सहायता मिलनी चाहिए ।"10 सौन्दर्य, सामंजस्य और परिष्कार के प्रति संवेदनशीलता के विकास पर भी नीति में निर्देश है ।11 हर मनुष्य के विचार और जीवन का हिस्सा बनाने के लिए राष्ट्रीय मूल्यों पर बल देने का भी निर्देश है जैसे-समान सांस्कृतिक धरोहर, लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, स्त्री-पुरूषों के बीच समानता, पर्यावरण का संरक्षण, सामाजिक समता, सीमित परिवार का महत्व और वैज्ञानिक तरीके के अमल की जरूरत 112 नीति में यह भी कहा गया है कि शिक्षा ऐसी हो जो दृष्टि को प्रखर करे, संवेदनशीलता लाए, समझ और चिन्तन में स्वतन्त्रता लाए ताकि आने वाली पीढ़ियां नए विचारों को सतत सृजनशीलता के साथ आत्मसात् कर सके ।13 राष्ट्रीय शिक्षा नीति की समीक्षा के लिए बनी राममूर्ति समिति ने जो आधारभूत मूल्य उल्लेख योग्य माने हैं, वे हैं - प्रजातंत्र, धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद, वैज्ञानिक स्वभाव, लिंग के आधार पर समानता, ईमानदारी, निष्ठा, साहस, न्याय (निष्पक्षता), सभी प्रकार के जीवधारियों, विभिन्न संस्कृतियों एवं भाषाओं (जनजाति भाषाओं समेत), के प्रति सम्मान आदि जो देश की एकता व अखण्डता के लिए अत्यन्त आवश्यक है । प्रो. रणजीतसिंह कूमट ने जो सार्वभौम शाश्वत मूल्य विशेष उल्लेखनीय माने हैं वे हैं-"ईमानदारी, सत्यनिष्ठा, सहिष्णुता, उदारता, स्वानुशासन, सेवा और बलिदान आदि ।।15 जैसा कि राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान और प्रशिक्षण परिशद् ने अपने प्राथमिक व माध्यमिक शिक्षा के राष्ट्रीय पाठ्यक्रम में माना है एवं अर्थ में पूरी शिक्षा ही मूल्यों की शिक्षा है ।16 शिक्षक और माता पिता को यह ध्यान देना है कि विद्यार्थी परम्परा से प्राप्त मूल्यों का मूल्यांकन करने में समर्थ हो और जैसा कि ऊपर राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने अपेक्षा की है नये विचारों को सतत सृजनशीलता के साथ आत्मसात् कर सके । किन मूल्यों का नैरन्तर्य बनाए रखना है और किन मूल्यों में परिवर्तन-परिवर्द्धन करना है यह तय करना सीखें । जनवरी-मार्च 1993 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524573
Book TitleTulsi Prajna 1993 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages156
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size9 MB
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