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मूल्य शिक्षा की एक शैक्षिक आधार दृष्टि
किन मूल्यों पर बल दें ? कबीर के लिए तो 'ढाई आखर प्रेम का' ही काफी था । कोई असहमत नहीं होगा । मूल तो यही हैं । महात्मा गांधी ने सत्य, प्रेम, अहिंसा का शिक्षण सर्वोपरि माना । यों तो वे भी सत्य और प्रेम इन दोनों को ही काफी मानते थे । वे जानते थे कि जहां प्रेम होगा वहां हिंसा नहीं होगी । किन्तु मोह को जब आदमी प्रेम मान बैठे तो हिंसा हो सकती है । इसलिए उन्होंने अहिंसा भी जोड़ा । मोह और प्रेम की व्याख्या करते हुए ओशो रजनीश कहते हैं- "प्रेमी को मनुष्य हमेशा पागल कहता रहा है और प्रेम को हमेशा अंधा कहता रहा है । ठीक शब्द 'मोह' है । मोह अंधा है ।... हम प्रेम को ही मोह और मोह को ही प्रेम कहते रहते हैं । जिनके जीवन में मोह है उनके जीवन में प्रेम नहीं हो सकता । 4
जहां प्रेम होगा वहां कठोरता नहीं होगी, शोषण नहीं होगा, अन्याय व अत्याचार नहीं होगा, और हिंसा भी नहीं होगी । जहां प्रेम होगा वहां भीतर सुख होगा, शांति होगी, चेतना होगी और रस होगा । रजनीश ने कहा है- " जब तुम रसपूर्ण होते हो तो तुम्हारे कृत्यों में भी रस बहता है । फिर तो तुम जो करते हो उसमें भी सुगन्ध आ जाती है 15
सत्य बहुत कठोर है । यथार्थ का सामना करना बहुत मुश्किल होता है । इसलिए शास्त्रों ने सत्य में प्रेम के समावेश का उपदेश दिया । कहा- - सत्यं ब्रूयात्
ब्रूयात् प्रियं
मा ब्रूयात् सत्यमप्रियम् ।
प्रियं च नानृतं ब्रूयोदेष धर्म सनातनः ।। "
मनुष्य को सत्य बोलना चाहिए और प्रिय बोलना चाहिए । उसमें भी सत्य ऐस हों जो अप्रिय न हो और प्रिय ऐसा हो जो असत्य न हो । यहीं सनातन धर्म है अर्थात् श्रेष्ठ मूल्य है- सार्वभौम एवं सार्वकालिक महत्व का मूल्य है । मूल्य मन, वचन, तीनों में उपस्थित रहते हैं। तीनों का नियंत्रण नियमन आवश्यक है । वाणी का नियंत्रण उच्च कोटि की साधना है । गीता में कहा है
कर्म
अनुद्वेगकरं वाक्यं सत्यं प्रियहितं च यत् । स्वाध्यायाभ्यसनं चैन वाम्डयं तप उच्यते 117
वाणी की साधना के लिए श्रेष्ठ ग्रंथों का बार-बार अध्ययन और अभ्यास आवश्यक है । स्वाध्याय और अभ्यास भी वाणी का तप है और ऐसी बात बोलना भी तप है जो उद्वेग करने वाली न हो, सत्य हो, प्रिय हो और हितकारी हो ।
योगदर्शन के अष्टांग योग में यम-नियमादि आठ अंगों का वर्णन किया गया है । अहिंसा, सत्य, अस्तेय ( चोरी न करना), ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह ये पांच यम हैं और शौच ( शुद्धता), सन्तोष, तप, स्वाध्याय तथा ईश्वर प्राणिधान ये पांच नियम हैं ।
जनवरी - मार्च 1993
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