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________________ के ' जैसे अविनीत घोड़ा चाबुक को बार-बार चाहता है वैसे विनीत शिष्य गुरु वचन को बार-बार न चाहे । जैसे विनीत घोड़ा चाबुक को देखते ही उन्मार्ग को छोड़ देता है, वैसे ही विनीत शिष्य गुरु के इंगित को देखकर अशुभ प्रवृत्ति को छोड़ दे ।' यहां विनीत शिष्य की उपमा आकीर्ण श्रेष्ठ घोड़े से दी गई है । १.३७ में सुशिष्य की उपमा भद्राश्व से तथा बाल (अविनीत) की गलिताश्व से दी गई है | है । ४.८ में स्वच्छन्दता -निरोधक मुनि की उपमा तनुत्राणधारी अश्व से दी गई इस उपमान के द्वारा मुनि के संसार-पार-गामित्व शक्ति का प्रतिपादन किया गया है । ११.१६ में बहुश्रुत मुनि के शील चारित्र्यादि श्रेष्ठ गुणों को उद्घाटित करने के लिए आकीर्ण कथक ( श्रेष्ठ जाति) घोड़े को उपमान बनाया गया है : वृषभ जहा से कम्बोयाणं आइण्णे कन्थए सिया । आसे जवेण पवटे एवं हवइ बहुस्सुए । ३० उत्कृष्ट शोभा एवं पराक्रम को प्रतिपादित करने के लिए शक्तिशाली वृषभ को तथा निकृष्ट भावों के द्योतन के लिए कमजोर बैल को उपमान बनाया गया है । एक स्थल पर बहुश्रुत की श्रेष्ठता को निरूपित करने के लिए तीक्ष्ण सींगों एवं पुष्ट स्कन्ध वाले साढ़ को उपमान के रूप में चित्रित किया गया है :-- जहा से तिक्खसिंगे जायखन्धे विरायई । वस जूहा हिवई एवं हवइ बहुस्सुए ।। " एक स्थल पर अयोग्य शिष्यों की अक्षमता को प्ररूपित करने के लिए कमजोर बैल को उपमान बनाया गया है। Jain Education International खलंका जारिसा जोज्जा दुस्सीसा वि हु तारिसा । जोइया धम्मजाणम्मि भज्जन्ति घिइदुब्बला ॥" महिष अधीरता, असमर्थता, आतुरता एवं कामासक्तता आदि भावों को उद्घाटित करने के लिए उत्तराध्ययन सूत्र में अनेक स्थलों पर महिष को उपमान बनाया गया है हुयासणे जलन्तम्मि चियासु महिसो विव । दड्ढो पक्को य अवसो पावकम्मेहि पाविओ ।। " यहां पापकर्मावृत्त और परवश जीव की उपमा अग्नि की चित्ता जलाए जाते हुए भैंसे से तथा पापकर्मों की उपमा अग्नि चित्ता से दी गई है । २५४ For Private & Personal Use Only तुलसी प्रज्ञा www.jainelibrary.org
SR No.524572
Book TitleTulsi Prajna 1992 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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