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________________ 'इन्द्रिय सुख स्पर्शादि में आसक्त जीव अकाल में ही मृत्यु को प्राप्त होता है' इस तथ्य की अभिव्यञ्जना के लिए एक स्थल पर शीतल जल - स्पर्श में मग्न भैंसे को उपमान बनाया गया है : फासे जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं अकालियं पावइ से विणासं । रागाउरे सीयजलावसन्ने गाहग्गहीए महिसे व डरन्ने ॥ ४ यहां मनोज्ञ स्पर्शो में आसक्त जीव की उपमा शीतल स्पर्श में आसक्त भैंसे से दी गई है । गलि - गर्दभ ( आलसी गधा ), अविनीतता, आलस्य एवं निकम्मापन को प्रतिपादित करने के लिए प्रस्तुत ग्रन्थ में गलिगर्दभ को उपमान के रूप में निरूपित किया गया है । एक स्थल पर गर्गाचार्य के दुष्ट शिष्यों की उपमा गलिगर्दभ से दी गई है जारिसा मम सीसाउ तारिसा गलिगढहा ॥" : गर्गाचार्य के शिष्य दुर्विनीत थे । उन्होंने शिष्यों को पढ़ाया भरण-पोषण किया लेकिन सबके सब कुशिष्य बन गए । वे योग्य बनकर वैसे ही बन गए जैसे पंख आने पर हंस ( विभिन्न दिशाओं में प्रकमण कर जाते हैं ) । बिडाल एक स्थल पर बिडाल को उपमान बनाया गया है : जहा विराला सहस्स मूले न मूसगाणं वसही पसत्था । एमेव इत्थनिलयस्स मज्भे न बम्भयारिस्स खमो निवासो ।" " जैसे बिल्ली की बस्ती के पास चूहों का रहना अच्छा नहीं होता, उसी प्रकार स्त्रियों की बस्ती के पास ब्रह्मचारी का रहना अच्छा नहीं होता ।" बिल्ली के गांव के पास चूहों की बस्ती हो तो चूहों की मृत्यु निश्चित है । चूहे बिल्ली के ग्रास हैं । उसी प्रकार ब्रह्मचारी भी स्त्रियों के पास नहीं रह सकते । इस प्रकार अनेक सार्थक एवं सटीक उपमानों का प्रयोग उत्तराध्ययन में उपन्यस्त है । पाद टिप्पण १. काव्यप्रकाश १ २. काव्यादर्श २.१ ३. तत्रैव २.४ ४. काव्य प्रकाश १०.८७ ५. तत्रैव १० ८७ पर वृत्ति ६. काव्यालंकार सूत्रवृत्ति ४.२१ ७. अलंकार रत्नाकर ७ ८. उत्तराध्ययन सूत्र, जैन विश्व भारती ११.१७ खंड १८, अंक ३ (अक्टू० - दिस०, ९२ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only २५५ www.jainelibrary.org
SR No.524572
Book TitleTulsi Prajna 1992 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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