SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 89
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दीव-प्पण? व अणन्त मोहे, नेयाउयं दमदट्ठमेव ॥ "अंधेरी-गुफा में जिसका दीपक बुझ गया हो उसकी भांति अनन्त मोह वाला प्राणी पार ले जाने वाले मार्ग को देखकर भी नहीं देखता है ।" यहां पर अनन्त मोहयुक्त प्राणी की उपमा अंधेरी-गुफा में जिसका दीप बुझ गया है वैसे पुरुष से दी गई है । अंधेरी गुफा में दीप के बुझ जाने से जीव भ्रमित हो जाता है, बाहर निकलने का मार्ग उसे दिखाई नहीं पड़ता है। उसी प्रकार मोहासक्त जीव गन्तव्य तक ले जाने वाले मार्ग को नहीं देख पाता है । संसार में ही भटक कर विषण्ण होता हैं। यह उपमान अत्यन्त सारगर्भित है । पशु वर्ग उत्तराध्ययन सूत्र में अनेक पशुओं को उपमान के रूप में प्रस्तुत किया गया है । उत्कृष्ट भावों की अभिव्यंजना के लिए श्रेष्ठ हाथी, अश्व एवं सिंहादि को तथा निकृष्ट भावों की प्रतिपादना के लिए मृगादि पशुओं को उपमान बनाया गया है : हाथो धैर्य, साहस, गंभीरता, शक्तिमत्ता आदि गुणों को उद्घाटित करने के लिए श्रेष्ठ हाथी को उपमान के रूप में उपस्थापित किया गया है । नाग (श्रेष्ठ हाथी) ___ अजेयता एवं अदम्य शौर्य-वीरत्व आदि भावों को प्रतिपादित करने के लिए नाग को उपमान के रूप में चित्रित किया गया है :--- पुट्ठो य दंसमसएहिं समरेव महामुणी । नागो संगाम सीसे वा सूरो अभिहणे परं ॥" 'डांस और मच्छरों का उपद्रव होने पर भी महामुनि समभाव में रहे, क्रोधादि का वैसे ही दमन करे जैसे युद्ध के अग्रभाग में रहा हुआ शूर हाथी बाणों को नहीं गिनता हुआ शत्रुओं का हनन करता है ।" यहां मुनि की उपमा हाथी से तथा अमूर्त क्रोधादि की शत्रुओं से दी गई है। जैसे हाथी संग्राम क्षेत्र में बाणों के घाव को जीतकर शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है उसी प्रकार मुनि-संयमी साधक क्रोधादि परिषहों को जीतकर संयम मार्ग में निरत होता है । कुंजर अजेय-भाव के निरूपण के लिए कुंजर (हथिनियों से परिवृत्त कुंजर) को उपमान बनाया गया है : जहा करेण परिकिण्णे कुंजरे सट्ठिहायणे। बलवन्ते अप्पडिहए एवं हवइ बहस्सुए ॥२ "जिस प्रकार हथिनियों से परिवृत्त साठ वर्ष का बलवान् हाथी किसी से पराजित नहीं होता उसी प्रकार बहुश्रुत दूसरों से पराजित नहीं होता है।" बहुश्रुत खण्ड १८, अंक ३ (अक्टू०-दिस०, ६२) २५१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524572
Book TitleTulsi Prajna 1992 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy