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________________ गोवालो भाण्डवालो वा जहा तद्दन्वऽणिस्सरो। एवं अणिस्सरो तं पि सामण्णस्स भविस्ससि ॥" "जैसे गोपाल एवं भाण्डपाल गायों एवं भण्डार के स्वामी नहीं होते, इसी प्रकार तू भी श्रामण्य का स्वामी नहीं होगा।" शील-सुन्दरी राजीमती कामुक रथनेमि को प्रबोध दे रही है। वह अधकचरा साधु राजीमती के अंग-लावण्य को देखकर कामासक्त हो जाता है। राजीमती उसे प्रतिबोधित करती है। जैसे गोपाल केवल गायों की सेवा करते हैं भाण्डपाल भण्डार की रक्षा करते हैं लेकिन उन्हें स्वामित्व-अधिकार की प्राप्ति नहीं हो पाती, वैसे हे रथ नेमि तुझे भी श्रामण्यधन की प्राप्ति नहीं हो सकती। इसलिए, हे श्रमण ! आसक्ति का परित्याग कर 'इन्दियाइं वसे काउं अप्पाणं उवसंहरे'-इन्द्रियों को अपने अधीर बना तथा अपने शरीर का उपसंहार कर-उसे अनाचार से निवृत्त कर । धुरी टूटे हुए गाड़ीवान् शोक एवं विषण्णता के भाव को प्ररूपित करने के लिए 'धुरी टूटे हुए गाड़ीवान्' को उपमान बनाया गया है : एवं धम्म विउक्कम अहम्म पडिवज्जिया । बाले मच्चु मुहं पत्ते अखे भग्गे व सोयई ॥ इसी प्रकार धर्म का उल्लंघन कर, अधर्म को स्वीकार कर मृत्यु के मुख में पड़ा हुआ अज्ञानी धुरी टूटे हुए गाड़ीवान् की तरह शोक करता है। यहां पर अज्ञानी मनुष्य की उपमा धुरी टूटे हुए गाड़ीवान् से दी गई है । धुरी के बिना गाड़ी नहीं चल सकती, गन्तव्य को पार नहीं किया जा सकता उसी प्रकार धर्म के बिना मृत्यु को पार नहीं किया जा सकता है। धूर्त (जुआरी) शोक भाव के निरुपण के लिए जुआरी को उपमान बनाया गया है - तओ से मरणन्तमि बाले सन्तस्सई भया । अकाम मरणं मरई धुते व कलिना जिए॥९ मरणान्त समय में वह अज्ञानी मनुष्य परलोक के भय से संत्रस्त होता है और एक ही दाव में हार जाने वाले जुआरी की तरह शोक करता हुआ अकाम-मरण से मरता है। यहां अज्ञानी मनुष्य की उपमा जुआरी से दी गई है। एक ही दाव में हारकर जुआरी शोक करता हुआ अनिच्छा-मृत्यु से मरता है वैसे ही अज्ञानी मनुष्य परलोक से डरता हुआ अकाम-मरण को प्राप्त होता है । प्रणष्टदीप (अंधेरे में बुझे दीपक वाला पुरुष) अज्ञानता आदि निकृष्ट भावों के निबन्धन के लिए एक स्थल पर प्रणष्टदीप पुरुष को उपमान बनाया गया है : २५० तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524572
Book TitleTulsi Prajna 1992 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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