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"जहा से वासुदेवे संखचक्कगयाधरे ।
अप्परिहयबले जोहे एवं हवइ बहुस्सुए ॥"९ "जिस प्रकार शंखचक्र गदा को धारण करने वाला वासुदेव अबाधित बल वाला योद्धा होता है उसी प्रकार बहुश्रुत अबाधित बल वाला योद्धा होता है।"
यहां इतिहास-प्रसिद्ध 'वासुदेव' को उपमान के रूप में ग्रहण किया गया है जो वीर-योद्धा, पराक्रमी तथा अपराजित थे। उसी प्रकार बहुश्रुत मुनि भी क्रोधादि शत्रुओं से सर्वथा अजेय होता है । लाख परिषह-शत्रुओं के उपस्थित होने पर भी वह पराजित नहीं होता है। चतुरन्त चक्रवर्ती
इसी प्रकार बहुश्रुत के विद्या-ऐश्वर्य को प्रतिपादित करने के लिए 'चाउरन्ते चक्कवट्टी' को उपमान बनाया गया है :
जहा से चाउरन्ते चक्कवट्टी महिडिढए।
चउदसरयणाहिवई एवं हवइ बहुस्सुए। जिस प्रकार महान् ऋद्धिशाली चतुरन्त चक्रवर्ती चौदह रत्नों का अधिपति होता है, उसी प्रकार बहुश्रुत चतुर्दश पूर्वधर होता है ।।
___ 'चाउरन्त चक्कवट्टी' का राज्य हिमालय से लेकर समुद्र तक चारों दिशाओं में व्याप्त होता है। वह हाथी, अश्व, रथ और मनुष्य इन चारों के द्वारा शत्रु का अन्त करने वाला होता है तथा चौदह रत्नों-सेनापति गाथापति आदि का स्वामी होता है. उसी तरह बहुश्रुत का विद्या-राज्य चतुर्दिक व्याप्त रहता है या तप, दया, दान करूणादि के द्वारा परिषह शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है। वह चतुर्दश पूर्वो का स्वामी भी होता है। यहां बहुश्रुत की बहुज्ञता एवं पराक्रमशीलता को उद्घाटित किया गया है । भृत्यविहीन-रणभूमि में राजा ___पुरोहित भृगु की असहाय दशा को चित्रित करने के लिए इस उपमान की प्रस्तुति की गई है :
पंखाविहूणो व्व जहेह पक्खी भिच्चा विहूणो व्व रणेनरिन्दो।
विवन्नसारो वणिओ व्व पोए पहीणपुत्तो मि तहा अह पि ॥" बिना पंख का पक्षी रणभूमि में सेना रहित राजा और जलपोत पर धनरहित व्यापारी जैसा असहाय होता है पुत्रों के चले जाने पर मैं भी वैसा ही हो गया हूं।
___ 'पुत्रविहीन पिता का जीवन असार है' इस लोकप्रसिद्ध तथ्य को प्रतिपादित करने के लिए तीन उपमानों-पंखरहित पक्षी, सेनारहित राजा और जलपोत पर धनरहित व्यापारी आदि का प्रयोग किया गया है। पंखविहिन-पक्षी, रणभूमि में सेनारहित राजा एवं जलपोत पर धनरहित व्यापारी असहाय होता उसी प्रकार भृगुपुरोहित भी पुत्ररहित होने से असहाय हो गया। यहां पर लोक-सिद्ध उपमानों का खण्ड १८, अंक ३ (अक्टू०-दिस०, ९२)
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