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________________ उपमान है और वह उपमेय की अपेक्षा उत्कृष्ट एवं प्रसिद्ध होता है । प्रस्तुत संदर्भ में उत्तराध्ययन सूत्र में प्रयुक्त उपमानों का विवेचन अवधेय है । उत्तराध्य यन सूत्र में प्राप्त उपमानों को निम्नलिखित दो वर्गों में विभाजित किया गया है :-(१) सजीव और (२) निर्जीव । १. सजीव वर्ग (क) मनुष्य वर्ग (ख) पशु वर्ग (ग) पक्षी वर्ग (घ) तिर्यञ्च वर्ग और (ङ) कीट-पतंगादि । २. निर्जीव वर्ग I. पर्वत II, जलीयस्रोत मूलक III. वनस्पति जगत् IV. प्रकाश मूलक अग्नि, दीपादि V. ग्रह-नक्षत्र वर्ग VI. अस्त्र-शस्त्र VII. धातु पदार्थ VIII. खाद्य पदार्थ और IX. विभिन्न । (क) मनुष्य वर्ग (राजन्य)अश्वारूढ़ दृढ़ पराक्रमी योद्धा 'उत्तराध्ययन' के ग्यारहवें अध्ययन में बहुश्रुत (मुनि) की उपमा अश्वारूढ दृढ़ पराक्रमी योद्धा से दी गई है : जहाइण्णसमारूढे सूरे दढपरक्कमे । उभओ नन्दिघोसेणं एवं हवइ बहुस्सुए ॥ जिस प्रकार आकीर्ण अश्व पर चढ़ा हुआ दृढ़ पराक्रम वाला योद्धा दोनों ओर बजने वाले वाद्यों के घोष से अजेय होता है, उसी प्रकार बहुश्रुत अपने आसपास होने वाले स्वाध्याय-घोष से अजेय होता है । यहां पर बहुश्रुत उपमेय के लिए 'अश्वारूढ़ पराक्रमी योद्धा'-उपमान का प्रयोग सार्थक एवं सोद्देश्य है । शंखचक्र गदाधर-वासुदेव 'बहुस्सुय पुज्जा' अध्ययन में ही एक अन्य स्थल पर बहुश्रुत के लिए शंक-चक्रगदाधारी व सुदेव को उपमान बनाया गया है : २४६ तुल सी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524572
Book TitleTulsi Prajna 1992 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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