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________________ करके अपने अस्तित्व को सुरक्षित रख सकता है ? इसका उत्तर आचार्यश्री ने अहिंसा की भाषा में दिया है । आचार्यश्री सामूहिक जीवन में अनुशासन और व्यवस्था मानते हैं । आचार्यश्री के विचारों में अनुशासन जीवन की गति का अवरोध नहीं किन्तु प्रेरक है । इसी आशय से उन्होंने लिखा है पंगुतां न न यत्येष, हस्तालम्बं सृजन्नपि । गति सम्प्रेरयत्येव, गच्छेयुस्ते निजक्रमः ।। अनुशासन आत्मानुशासन का पूरक है । आत्मानुशासन की कमी में अनुशासन की आवश्यकता है । ज्यों ज्यों आत्मानुशासन का विकास होता है, त्यों-त्यों अनुशासन स्वतः ही क्षीण हो जाता है-- यथा यथोदयं याति, पुण्यं स्वात्मानुशासनम् । विफणावस्थमार्याणां, तथा तथाऽनुशासनम् ।। __ आचार्यश्री की दृष्टि में अनुशासन का मूल्य सापेक्ष है। सूर्योदय होने पर दीपक या बल्व का प्रकाश अपेक्षित नहीं है किन्तु अन्धेरे में भी उनकी अपेक्षा नहीं है, यह कैसे माना जा सकता है ? अनुशासन और व्यवस्था को आदेयता भी इसी संदर्भ में जानी जा सकती है। पंच सूत्रम् के पांच सूत्र हैं १. अनुशासन सूत्र २. व्यवस्था सूत्र ३. चर्या सूत्र ४. आलंबन सूत्र ५. शांत सहवास सूत्र __ प्रस्तुत कृति मुख्यतः तेरापंथ साधु-संघ को लक्षित कर लिखी गई है किंतु इसमें जिन तथ्यों और सत्यों का उद्घाटन है वह केवल तेरापंथ साधु संघ के लिए ही नहीं अपितु हर सामाजिक संगठन के लिए है। इसकी रचना वि० सं० २०२२ में माघ शुक्ला ७ के दिन हिसार में सम्पन्न हुई । इसका हिन्दी अनुवाद साध्वीश्री कानकुमारी एवं संपादन मुनिश्री दुलहराज ने किया है। शिक्षाषण्णवति : आचार्यश्री तुलसी का विभिन्न विषयों का स्पर्श करने वाला एक नीतिकाव्य है। इसकी मौलिक विशेषता यह है कि इसकी श्लोक रचना मानतुंगाचार्य के भक्तामर स्तोत्र की पदपूर्ति के रूप में हुई है । शैक्ष विद्यार्थियों के लिए इसकी उपयोगिता असंदिग्ध है । इसके पारायण से श्लोकरचना, पदपूर्ति, विषय निरूपण आदि का सम्यग् बोध होता है। इसमें पदपूर्ति के साथ भाव सामंजस्य का निर्वहन भी बहुत सुचारू रूप से हुआ है । प्रस्तुत कृति में विरक्ति का विश्लेषण करते हुए कहा दावानलं ज्वलित मुज्ज्वल मुत्स्फुलिंगं, कः कोऽत्र भोः प्रशमयेत् प्रचुरेन्धनेन । २४० तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524572
Book TitleTulsi Prajna 1992 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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