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________________ आगे आचार्यश्री के काव्यों में से कुछ चुने हुए उद्धरण प्रस्तुत किए जाते हैं, जिनसे कि आपकी भाषा-शैली का स्वरूप पाठकों के सम्मुख स्पष्ट उजागर हो सके। सर्वप्रथम मेवाड़ की प्राकृतिक छटा का स्वाभाविक चित्रण देखियेमोटा-मोटा है-शोल जठ, वृक्षावलियां स्यूं हऱ्या-मर्या, नदियां नालां रो पार नहीं, तालाब जमीं स्यूं जड्या पड्या । मौसम-मौसम में लड़ालुम्ब, बै खेत खड्या लहराव है, कोयलियां कूज कुहुक कुहुक, ___ पथिकां रो स्वागत गावै है ॥ -(मगन चरित्र पृ०-१) इसके बाद उज्जन की ऐतिहासिक महत्ता का वृतान्त देखिएवो वीर विक्रमादित हुयो, जिण रो जस मुलका मुलक जियो । वो सिद्धसेन को चमत्कार, जिनमत री जोत जगाणी है । मालव अवन्ति की राज्यभूमि, उज्जयणी पुरी पुराणी है । कवि कालिदास री कर्मभूमि, आषाढभूति री बोधभूमि । आचार्य सुहस्ति विहार-भूमि, इतिहासकार री वाणी है। मालव अवन्ति की राज्यभूमि, उज्जयणी पुरी पुराणी है ।। पढ़कर सम्राट अशोकपत्र, ___ खोई निज आंख कुणाल पुत्र । सुत सम्प्रति उज्जयणीश हुयो, था पुरातत्व स्यूं जाणी है। मालव अवन्ति की राज्य भूमि, उज्जयणी पुरी पुराणी है। - (डालिम चरित्र, पृष्ठ ३) इसी क्रम में जयपुर शहर की शोभा का अवलोकन कीजिए देख्या शहर अनेक, एक जयपुर री छठा निराली, बो जौहरी बाजार निहारो, चिहूं ओर दुग डाली। खण्ड १८, अंक ३ (अक्टू०-दिस०, ९२) २१५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524572
Book TitleTulsi Prajna 1992 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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