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________________ कुछ चुने हुए नाम ही प्रस्तुत किये गये हैं। इससे स्पष्ट होता है कि राजस्थानी भाषा साहित्य का प्रारंभ काल जैन कवि-कोविदों की रचनाओं से प्रकाशमान है और इसके संरक्षण में जैन-समाज का सराहनीय योगदान है। __ इसी प्रकार मध्यकालीन राजस्थानी कवियों में बहुसंख्यक जैन-कवि प्रकाशमान हैं, जिनमें समय सुन्दर, हेमरतन, लब्धोदय, जिनहर्ष, धर्म वर्धन आदि सर्वज्ञात हैं और अत्यन्त समादृत हैं। वर्तमान काल में भी राजस्थानी भाषा साहित्य के उद्धार और उन्नयन में जैन विद्वान् संलग्न हैं उनकी संख्या भी कम नहीं हैं। उनकी प्रतिभा का सुफल राजस्थानी साहित्य-जगत् को सुलभ है। इन कवि-कोविदों में भारत विख्यात साहित्य संशोधक स्व० अगरचन्द नाहटा, कविश्री कन्हैयालाल सेठिया एवं समीक्षक डॉ. किरण नाहटा के शुभ नाम सहज ही स्मरण हो आते हैं । इनके साथ ही संतसमाज में परम सम्मानित आचार्यश्री की राजस्थानी साहित्य साधना भी अविस्मरणीय है । आचार्यश्री द्वारा विरचित पांच राजस्थानी काव्य ग्रंथ-"कालू यशोविलास", ''माणक महिमा", मगनचरित्र", "डालिम चरित्र" और "चन्दन की चुटकी भली" इस विषय में प्रकाशमान हैं । इन पांचों काव्यों की भाषा शैली पर यहां संक्षिप्त चर्चा करने की चेष्टा की जाती है । राजस्थानी भाषा के साथ आचार्यश्री का जो हार्दिक सम्बन्ध है, उसके विषय में आपका निम्न वक्तव्य ध्यान में रखने योग्य है-- "मेरे पास कुछ सुझाव आए कि ये व्याख्यान हिन्दी में होने चाहिए। इस तथ्य से मैं भी सहमत हूं कि हिन्दी का अपना उपयोग है, पर इस रहस्य को अनावृत करने में मुझे कोई संकोच नहीं है कि राजस्थानी कविता में मेरा जो सहज प्रवाह है, हिन्दी में वह उतना सहज नहीं है। इसलिए मेरे अन्तःकरण में सहज स्फूर्त भावों की सहज अभिव्यक्ति राजस्थानी में ही हुई । अब इन्हें हिन्दी में रूपान्तरित करूं तो वह सहजता नहीं रह पायेगी. इस दृष्टि से राजस्थानी भाषा में ही 'चंदन की चुटकी भली" नाम से पाठको के हाथ में पहुंच रहे हैं।" -(चन्दन की चुटकी भली, पूर्वरंग, पृष्ठ : ३) इसी क्रम में राजस्थानी भाषा के सम्बन्ध में आपकी निम्न अभिव्यक्ति भी सुधी पाठकों के लिए ध्यातव्य है तीन दशक पहिला री प्यारी, साधारण सी रचना म्हारी । अलग-अलग प्रकरण ढालां ही, हस्तलिखित प्रति पूठा मांही। अब एकत्रीकरण कियो है, नव रचना रो रूप दियो है । बा ही राजस्थानी भाषा, सीधी-सादी सरल खुलासा ॥ -(चन्दन की चुटकी भली, पृ०-३५) २१४ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524572
Book TitleTulsi Prajna 1992 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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