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________________ छाछ रहित घृत हो सके, मथनी के सहयोग । कर्म मुक्त त्यों जीव हों, तप के सतत् प्रयोग ।। पुस्तक के अन्त में जो पारिभाषिक शब्दकोष है, वह बहुत ही महत्त्वपूर्ण है । जैनदर्शन के दार्शनिक प्रत्ययों की विवेचना पाठकों के लिए पुस्तक के अध्ययन को सुगम और सहज बनाती है। अन्त में मैं मुनिजी के प्रयास की बहुत प्रशंसा करती हूं और यह कामना करती हूं कि भविष्य में भी वे इसी तरह के प्रयासों से जैन समाज ही नहीं सम्पूर्ण मानवता का मार्गदर्शन इस प्रकार के आध्यात्मिक साहित्य से करते रहें । आज के परमाणु युग में जैन अहिंसावाद और उदारवाद ही शांति एवं सद्भावना में सहायक हो सकता है । -श्रीमती सुशीला चौहान अध्यक्ष, स्नातकोत्तर दर्शन विभाग डूंगर महाविद्यालय, बीकानेर ३. रोशनी की मीनारें--प्रथम-संस्करण-१९९१, मूल्य-५० रुपये, पृष्ठ संख्या-५२३ | १५ । लेखिका-साध्वी निर्वाणश्री। सम्पादक-मुनिश्री धर्मरुचि प्रकाशक-अखिल भारतीय तेरापन्थ युवक परिषद्, 'युवालोक', लाडनू (राजस्थान) आज उत्तम संस्कारों के बीज बोने और उन्हें पल्लवित कर सकने वाले साहित्य की आवश्यकता है । इस ओर अखिल भारतवर्षीय तेरापन्थ धर्मसङ्घ की विदुपी साध्वी निर्माणश्री का ध्यान गया। तेरापन्थ धर्मसङ्घ के जिनकल्प नवम आचार्य श्री तुलसी गणी के शैक्षिक प्रयत्न से जो विशिष्ट शताधिक साध्वियां तैयार हुई हैं, साध्वीश्री निर्वाणश्री जी उन्हीं में से एक हैं। आपके द्वारा प्रणीत ग्रन्थ का नाम है 'रोशनी की मीनारे' । ग्रन्थ की बीस कहानियों के नाम इस प्रकार हैं १. महासती ब्राह्मी (पहला कदम), २. महासती सुन्दरी (प्रतिबोध), ३. महासती दमयन्ती (अमावस में खिलती पूर्णमासी), ४. महासती कौशल्या (अपराजिता), ५. महासती सीता (अबोला समर्पण), ६. महासती कुन्ती (उत्सर्ग), ७. महासती द्रौपदी (अप्रकम्प दीपशिखा), ८. महासती राजीमती (शङ्खनाद), ९. महासती पद्मावती (गङ्गा का अवतरण), १०. महासती मृगावती (मैं अबला नहीं हूं), ११. महासती चन्दनवाला (गौरव का हस्ताक्षर), १२. महासती प्रभावती (उपकार का साया) १३. महासती शिवा (अमिट पदचिह्न), १४. महासती सुलसा (फौलादी चट्टान), १५. महासती पुष्यचूला (आश्विन की नदी), १६. महासती सुभद्रा (सङ्गम), १७. महासती शीलवती (सोने मे सुहागा), १८. महासती चेलना (कसौटी चढ़ा कञ्चन), १९. महासती अञ्जना (सङ्घर्ष), २०. महासती मदनरेखा (रोशनी की मीनार)। ___ इन में से प्रारम्भ की सोलह महासतियों के नाम अधिक असिक हैं खण्ड १८, अंक २ (जुलाई-सित०, ९२) १६३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524571
Book TitleTulsi Prajna 1992 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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