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""ब्राह्मी 'चन्दनबालिका भगवती' राजीमती द्रौपदी
कौशल्या 'मृगावती च "सुलसा शीता 'सुम द्रा शिवा ॥ १"कुन्ती शीलवती नलस्य दयिता" चूला" प्रभावत्यहो
"पद्मावत्यपि "सुन्दरी दिनमुखे कुर्वन्तु वो मङ्गलम् ।।" प्रथम ब्राह्मी की और द्वितीय सुन्दरी की कहानी अत्यन्त प्राचीन है। ये दोनों प्रथम तीर्थङ्कर ऋषभदेव की कन्याएं हैं और भारत के प्रथम सम्राट भरत की अनुजाएं । भगवान् ऋषभदेव ने ब्राह्मी को ब्राह्मीलिपि सिखाई थी और सुन्दरी को अङ्कःविद्या।
नीलाञ्जना की आकस्मिक मृत्यु देखकर ऋषभदेव को वैराग्य हो गया । फलतः उन्होंने भरत को उत्तराधिकार देकर दीक्षा लेली और घोर तप तपने लगे। उस समय उनकी मां मरुदेवी जीवित थीं। उनको ब्राह्मी से बहुत प्यार था। वे ब्राह्मी को सदा अपने पास रखती थीं। अकस्मात् उनका निधन हो गया। दादी की मत्यू से ब्राह्मी को बड़ा सदमा लगा। वह बेचैन रहने लगी । संसार की असारता और जीवन की क्षण भङ्ग ता उसके ध्यान में आ गयीं।
ब्राह्मी ने समवसरण में विराजमान भगवान् ऋषभदेव से दीक्षा लेने का विचार किया। अपने भाई सम्राट् भरत से इसके लिए अनुमति मांगी, पर वे ब्राह्मी का विवाह करना चाहते थे, अतः विचार करके उत्तर देने को कहा।
वैराग्य परिपाक की पराकाष्ठा तक जा पहुंचा । अब ब्राह्मी को घर में रहना कठिन प्रतीत होने लगा। फलतः उसने भाई भरत से विनय पूर्वक, अनुमति देने की प्रार्थना की । अन्ततोगत्वा उन्हें अनुमति देनी पड़ी। अनुमति पाकर ब्राह्मी ने भगवान् ऋषभदेव से यथाविधि दीक्षा लेकर दुर्धर तप तपना शुरू कर दिया।
__ दूसरी कहानी ब्राह्मी की छोटी बहन सुन्दरी की है। इस नाम का कारण उसका अनुपम सौन्दर्य था । सौन्दर्य के साथ उसमें अगणित अनुपम गुण भी थे । जिस दिन ब्राह्मी ने दीक्षा ली थी उसी दिन से सुन्दरी भी दीक्षा लेने को लालायित हो गयी। पर भाई की अनुमति की प्रतीक्षा में उसे रुकना पड़ा । भाई-सम्राट भरत दिग्विजय में व्यस्त थे। इधर सुन्दरी ने आचाम्ल व्रत का परिपालन प्रारम्भ कर दिया। इस से उसकी सुन्दरता का खजाना अदृश्य हो गया और शरीर अस्थिपञ्जर । दिग्विजय से भरत के लौटने पर सुन्दरी ने उन से दीक्षा लेने की अनुमति मांगी। वे अनुमति नहीं देना चाहते थे पर सुन्दरी के अहार्य निश्चय को देख कर देना पड़ी। अनुमति लेकर सुन्दरी ने भी भगवान् ऋषभदेव से दीक्षा लेली और घोर तपश्चरण में लीन हो गयी।
__ इसी तरह इन दोनों कहानियों की भांति आगे की सभी कहानियां अत्यन्त शिक्षाप्रद और रोचक है। कहीं-कहीं तो चित्तद्रुत हो जाता है और आंखों से गङ्गायमुना की धाराएं प्रवाहित होने लगती हैं, पढ़ते-पढ़ते । लेखिका साध्वी जी की लेखन शैली अत्यन्त प्रभावक है। बीस कहानियों में से किसी भी एक को शुरू करने पर उसका अन्त किये बिना मन तृप्त नहीं होता-आगे का वृत्त जानने की उत्सुकता बढ़ती ही जाती है।
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तुलसी प्रज्ञा
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