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चूंट आदि पुस्तकों की अनेक आवृत्तियां प्रकासित हो चुकी है।
यह एक संक्षिप्त जानकारी है। ऐसे तो अनेक संत हैं जो कुछ न कुछ लिखते ही रहते हैं । पर मुझे जो कुछ सामग्री उपलब्ध हुई उसे ही यहां अंकित किया गया है।
दयानी ढाल जीव हीस्या छ अतीबुरी तीण माही ओगण अनेक दया धर्म मे गुण घणां ते सुणज्यो आण ववेक ॥१।। एआकणी दयाभगोती छे सुषदाइ ते मुग्तपुरीनी साइजी साठनाम दया रा कह्या जिनद समांअगेरे माहीजी दया ।।२।। पुजनीक नाम दया रो भगोती मंगलीक नाम छ नीकोजी जेभवी जीव दया ने सर्णे त्याने छे मुग्तन जीकोजी ।।३।। श्रीवीधे २ छ कायनहणवी या दया कही जिन रायोजी दया भगोती रा गुण छे अनंता ते पूरा केम कहायोजी दया ।।४।। त्रीवीधे २ छ काय जीवा ने कोइ भेन उपजावे तामोजी यो अभेदान कहा भावंता पणी दयारो छे नामोजी दया ॥५॥ त्रीवीधे २ छ काय मारंण कोइ त्याग करे मन सुधो जी। पुरीदया भगवंते भाषी तीण रा पापरा बारणारुध्याजी दया ।।६।। कोइ त्याग कीया वीना हम्या टाले तो कर्म निर्जरा थावेजी पणी हंस्याटाल सुभ जोगवर्ते छे त्यारे पुनरा ठाठ बंधायोजी दया ।।७।। इण दयासुपाप करम मीट जावे वले कर्म करे चक चुरोजी या दोय गुण मे अनंतागुण आयातेपालेछ वीरला सुरोजी दया ॥८॥ या इज दया महाव्रता पहलो तीणमै दया सर्वयाइ जी पुरी दया साधुजी पाले बाकी दया रही नइ कांइ जी दया ।।९।। छकायनेह णे हणावे नाही वले हणंतानेनही सरावे जी इसडी दयानी रंतर पाले त्यारे तुलबीजो कुण आवेजी दया ।।१०।। याइज दया चोखा चीत पाले केवलीयारी छ गादी जी या इज दया चोषेसभामेपरूपेती णनेबीर कह्यो न्यायवादीजी दया ।।११।। या इज दया केवलीया पाली मन परजे अवधग्नानी जी वलेमतग्नाने सुर्तग्नानी याइ दया मनमानी जी दया ।।१२॥ या इज दया लबध धारया पाली याइज पर्वधानी जी संका हुवेतो नीसंकसुजोवो सुन्नमेवात नही बानीजी दया ।।१३।। देस थकी श्रावक पाले तीणने पंण साधबषांणेजी श्रावक हुए हंस्या करे गर बेठा तीन मे धर्म नही जाणेजी दया ।।१४।। जिन मार्ग रीनीम दया पर षोजी हुवे ते पावेजी पीण हंस्या माही धर्म हुवे तो जल मथीया घी आवेजी दया ॥१५॥ प्रांणभुतजीव नइ सतावे तनरी धातन कर्णीलगारोजी तीन काल तीर्थकर की वाणी आचारंग चोथो ध्यनंमझारोजी दया ।।१६।।
तुलसी प्रज्ञा
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