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मांगीलालजी 'मुकुल', मुनिश्री मोहनलालजी सुजान', मुनिश्री नेमीचन्दजी, मुनिश्री शुभकरणजी, मुनिश्री ताराचन्दजी, मुनिश्री शोभालालजी, मुनिश्री धर्मचन्दजी, मुनिश्री मधुकरजी, मुनिश्री सुखलाल, मुनिश्री वत्सराजजी, मुनिश्री राकेशकुमारजी, मुनिश्री विजयराजजी मुनिश्री चौथमलजी मुनिश्री मोहनलालजी, मुनिश्री फतेहचन्दजी 'पंकज', मुनिश्री सम्पतमलजी, मुनिश्री गुलाबचन्दजी, मुनिश्री मोहनलालजी शार्दूल आदि सन्त-साहित्यकारों के नाम गिनाये जा सकते है । आख्यान, भजन, परिसंवाद मुक्तक आदि विविध विधाओं में इनकी रचनाएं उपलब्ध होती हैं ।
इनमें मुनिश्री सागरमलजी, मुनिश्री कन्हैयालालजी, मुनिश्री मधुकरजी मुनि सुखलाल, मुनिश्री वत्सराजजी मुनिश्री मोहनलालजी आमेट आदि की काव्यकार के रूप में भी अपनी एक पहचान हैं ।
मुनिश्री सागरमलजी के भक्ति गीत सर्वत्र प्रसिद्ध है । चुटीली भाषा के साथसाथ आपका काव्य शिल्प भी काफी निखरा हुआ है । मुनिश्री कन्हैयालालजी लोकरुचि के साहित्यकार हैं । आपकी अनेक पुस्तकों की अनेक आवृत्तियां प्रकाशित हो चुकी हैं। विकसित कलियां, बून्दों का मेला, तीन मित्र, आषाढ़ मुनि, कुसुमलता, विमलचन्द, व्याख्यान मुक्तावली, स्वाती री बूंदां, दिव्यदोहावली आदि रचनाएं प्रमुख हैं ।
मधुर गायक मुनिश्री मधुकरजी के गीत भी काफी लोकप्रिय हैं । आपकी
गूंजन, हिवर्ड रो हेलो, दिवलो कद जलसी आदि पुस्तकों की कई आवृत्तियां छप चुकी हैं। वर्तमान में तेरापंथ धर्म संघ की ख्यात लिखने का दायित्व भी आप पर है आपने तेरापन्थ और मर्यादा तथा मगनचरित का सम्पादन भी किया है । इसके अतिरिक्त आपने जयाचार्य की कृतियों की समाकलना भी की है ।
लेखक स्वयं भी राजस्थानी भाषा का एक नम्र सेवक है ।
कविताओं के कुछ अंश यहां प्रस्तुत हैं :
ठहरो काचा फल मत तोडो,
पत्थर फेंक- फेंक बेमतलब मत औरां रा माथा फोड़ो, खून-पसीनो सींच सींच कर माली इं दरखत ने पाल्यो, अपणो जीवन गाल अमोलो, इं विरवै नै सदा रूखाल्यो, आज आम जद पाकण लाग्या मत खींचो भागो पुरस्योड़ो || एक और पद्य -
तूं अपणो पुरुषार्थं जगाल दुनियां अपणो आप झुकेली, बादल घर-घर पाणी बांटे, पण नदियां रो काम करारो, एक झपार्ट में ले ज्यावं ए पाणी सारी दुनियां रो, बा बांध मजबूत इसो तूं नदियां अपण आप रुकेली ॥ " गीतों का गुलदस्ता " तथा "निर्माण के बीज में" मेरे अनेक राजस्थानी गीत एवं परिसंवाद संकलित है । मैंने भवदेव - नांगला पर एक लूर भी लिखी है ।
मुनिश्री बत्सराजजी शब्द संरचना के साथ-साथ भाव - विन्यास के भी पारगामी मनीषी संत हैं । उनकी कविताओं के कुछ बोल यहां उद्धृत किए जा रहे हैं ।
तुलसी प्रज्ञा
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