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मुनिश्री गणेशमलजी ने दोहा विधा में विपुल साहित्य लिखा है । मुख्य रूप से वह हिन्दी में है पर राजस्थानी में भी आपके सूझबूझ के सोरठे, मुहावरा रा दोहा, कर्म बावनी, व्याख्यान वाटिका, विवेक की बातें, जिन वन्दना आदि कृतियां प्रमुख हैं । मुनिश्री डूंगरमलजी तथा मुनिश्री जंवरीमलजी धर्मसंघ के ऐसे तपे हुए संत है जिनकी आचार-निष्ठा उनके साहित्य में भी प्रतिविम्बित होती है । मुनिश्री डूंगरमलजी की प्रमुख रचना है - सती सुर सुन्दरी ।
मुनिश्री जंवरीमलजी की प्रमुख रचनाएं इस प्रकार हैं- अनुभव प्रबन्ध, प्रद्युम्न - कुमार, राजहंस आख्यान, पतितपावन, चन्द्रचकोरी, मदनरेखा, राजहंस, शिवशेखर, चण्डकौशिक, राजीमती आदि-आदि ।
साहित्य की इस धारा को एक सुलभ गति देने वाले इस युग के संतों मुनिश्री जशकरणजी, मुनिश्री दुलीचन्दजी, मुनिश्री छत्रमलजी, मुनिश्री पूनमचन्दजी का नाम भी बड़े आदर के साथ लिया जा सकता है । मुनिश्री जशकरणजी की कृतियां सर्ववोधा हैं ।
मुनिश्री दुलीचन्दजी के पास प्रकृति प्रदत्त सुस्वर- कण्ठ है । अतः जब वे अपने गीतों को तन्मय होकर गाते हैं तो श्रोता उनके साथ थिरकने लगते हैं । मुनिश्री ने कुछ कथा गीत भी लिखे हैं जो लोगों पर अपनी एक छाप छोड़ते हैं । आपके गीतों कविताओं तथा मुक्तकों के कुछ संग्रह भी प्रकाशित हुए हैं, उनमें आत्म बावनी, अध्यात्म गीतांजली, मायली बात, अंताक्षरी सोपान आदि प्रमुख हैं ।
सौम्य साहित्यकार मुनिश्री छत्रमलजी ने अपनी लेखनी के अनेक दिशाओं में अप्रतिबद्ध रूप से चलने के आग्रह को बड़ी सहानुभूति से स्वीकारा है । अनुभूति के पैनेपन को इनके काव्य में बहुत सरलता से पहचाना जा सकता है | आपकी अनेक पुस्तकें प्रकाश में आई हैं जिनमें अमृत रा गुटका, छत्र - दोहावली, जय सौरभ, मंजुला, रत्नसेन रत्नावती, पुष्पवती आदि प्रमुख है ।
जनप्रतिबोधन प्रवीण, यायावर भुनिश्री पूनमचन्दजी का विपुल आख्यान साहित्य उपलब्ध है । चूंकि साधारण जनता के मन में प्रवेश के लिए आख्यायिकाओं का अपना एक महत्त्वपूर्ण स्थान होता है अत: इस विधा में आपने ८१ आख्यान लिखे हैं | वीर अम्बड, पन्द्रह लाख पर पानी, सुधा सिन्धु, रत्नसेन, महाभारत, द्रौपदी का चरित्र आदि प्रमुख हैं । आपने कुछ सुन्दर एकांकी भी लिखे हैं । उनमें दहेज एक अभिशाप, मियां मिट्ठू, कालचक्र, उसके बाद और उसके बाद आदि प्रमुख हैं ।
आधुनिक युग के साहित्यकारों की दूसरी पंक्ति में मुनिश्री नवरतनमलजी, मुनि श्री धनराजजी, मुनिश्री हनुमानमलजी, मुनिश्री मानमलजी, मुनिश्री अगरचन्दजी, मुनिश्री बालचन्दजी का नाम प्रमुख रूप से आता है । इनकी नवसरोहार, चंचलकुमारी, सोहन रानी, भाविनी, धर्मराज, सीधे-सादे भजन, अनहद नाद आदि रचनाएं प्रमुख हैं ।
इस युग की तीसरी पीढी में मुनिश्री चम्पालालजी ( सरदार ) मुनिश्री सागरमलजी 'श्रमण', मुनिश्री कन्हैयालालजी, मुनिश्री सुमेरमलजी लाडनूं, मुनिश्री सुमेरमलजी 'सुमन', मुनिश्री राजकरणजी, मुनिश्री मगनलालजी 'प्रमोद' मुनिश्री
खंड १८, अंक २, (जुलाई-सित०, ६२ )
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