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६. चारण लब्धि
चरण का अर्थ है गमन । जिस लब्धि से विशेष गमनागमन होता है वह चारण लब्धि है। वह दो प्रकार की है-जंघाचारण और विद्याचारण । चारित्र और तप के विशेष प्रभाव से जो गमनागमनरूप विशेष लब्धि प्राप्त होती है वह जंघाचारण लब्धि है और विद्या-सिद्धि के द्वारा जो विशेष गमनागमनरूप लब्धि उपलब्ध होती है वह विद्याचारण लब्धि है। जंघाचारणलब्धि-प्राप्त मुनि रुचकवरद्वीप तक तथा विद्याचारणलब्धि-प्राप्त मुनि नंदीश्वर द्वीप तक आकाशमार्ग से जा आ सकते हैं । जघाचारण जहां कहीं भी जाना चाहते हैं, वे सूर्य-किरणों को निश्रित करके ही जाते हैं, पर विद्याचारण ऐसे भी जा सकते हैं। जंघाचारण एक ही उडान में अपने स्थान से रुचवरदीप तक चले जाते हैं। वापिस लौटते समय प्रथम उडान में नंदीश्वर द्वीप तक और दसरी उडान में अपने स्थान पर आते हैं । यदि ये मेरु पर्वत के शिखर पर जाना चाहें तो प्रथम उड़ान में पण्डकवन में चले जाते हैं। लौटते समय प्रथम उडान में नंदनवन में तथा दूसरी उडान में अपने स्थान पर आ जाते हैं। जंघाचारणलब्धि चारित्र के अतिशय प्रभाव से प्राप्त होती है। उसके धारक पण्डुकवन से आते समय दो उड़ानों में अपने स्थान पर आते हैं। विद्याचारण एक उडान में मानुषोत्तर पर्वत तक तथा दूसरी उडान में नंदीश्वर द्वीप तक आते हैं किन्तु वहां से लौटते समय एक ही उडान में अपने स्थान पर आ जाते हैं । विद्याचारण मेरु पर्वत पर जाते समय प्रथम उडान में नन्दनवन तथा दूसरी उडान में अपने स्थान पर आ जाते हैं। विद्याचारण लब्धि विद्या से प्राप्त होती है। उसका उपयोग करने से वह और अधिक विकसित होती है। अतः विद्याचारण एक ही उडान में पण्डकवन से अपने स्थान पर आ जाते हैं । १०. आशीविष लब्धि
जिसके दाढ में विष है वह आशीविष है । इस लब्धि को प्राप्त करने वाला साप और बिच्छू की तरह दूसरों को शाप आदि द्वारा भार सकता है।" ११. केवली लब्धि
जिसने केवलज्ञान को प्राप्त कर लिया है वह केवली है। केवली समस्त रूपी, अरूपी पदार्थों को साक्षात् जान लेता है। १२. अवधि लब्धि
जिससे रूपी द्रव्यों का साक्षात्कार किया जा सके वह अवधि लब्धि है । १३. गणधर लब्धि
भगवान् के मुख से त्रिपदी को सुनकर गणधर जिस सामर्थ्य से द्वादशांगी की रचना करते हैं वह गणधर लब्धि है। १४. पूर्वधर लब्धि
जो दश तथा चवदह पूर्वो को जानता है वह पूर्वधर है ।।
तुलसी प्रज्ञा
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