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________________ (७) बीजबुद्धि लब्धि (८) पदानुसारी लब्धि (९) संभिन्नश्रोत लब्धि (१०)ऋजुमति लब्धि (११) विपुलमति लब्धि (१२) क्षीरमध्वाश्रव लब्धि (१३) अक्षीणमहानस लब्भि (१४) वैक्रिय लब्धि (१५) चारण लब्धि (१६) विद्याधर लब्धि (१७) अर्हत्त्व लब्धि (१८) चक्रवर्तित्व लब्धि (१९) बलदेवत्व लब्धि और (२०) वासुदेवत्व लब्धि । प्रवचनसारोद्धार में आचार्य नेमिचन्द्र ने अट्ठावीस लब्धियों का उल्लेख किया है। वे ये हैं आमोसहि विप्पोसहि खेलोसहि जल्लओसही चेव । सम्वोसहि संभिन्ने ओही रिउ विउलमइलद्धी ॥१॥ चारण आसीविस केवलि य गणहारिणो य पुस्वधरा । अरहंत चक्कवट्टी बलदेवा य ॥२॥ खीर महुसप्पिआसव कोटुयबुद्धी पयाणुसारी य । तह बीयबुद्धि तयग आहारग सीयलेसा य ॥३॥ वेउवि यदेहलद्धी अक्खीणमहाणसी पुलाया य। परिणामतववसेणं एमाइ हुंति लद्धीओ ॥४॥ अर्थात्-(१) आमषों षधि लब्धि (२) विडोषधि लब्धि (३) खेलौषधि लब्धि (४) जल्लोषधि लब्धि (५) सवौषधि लब्धि (६) संभिन्नश्रोतो लब्धि (७) चारण लब्धि (८) ऋजुमति लब्धि (९) विपुलमति लब्धि (१०) चारण लब्धि (११) आशीविष लब्धि (१२) केवलि लब्धि (१३) गणधर लब्धि (१४) पूर्वधर लब्धि (१५) अहंत् लब्धि (१६) चक्रवति लब्धि (१७) बलदेव लब्धि (१८) वासुदेव लब्धि (१९) क्षीर-मधुसपिराश्रव लब्धि (२०) कोष्ठक लब्धि (२१) पदानुसारि लब्धि (२२) बीजबुद्धि लब्धि (२३) तेजोलेश्या लब्धि (२४) आहारक लब्धि (३५) शीतलेश्या लब्धि (२६) वैकुर्विकदेह लब्धि (२९) अक्षीणमहानस लब्धि (२८) पुलाक लब्धि । उपरोक्त लब्धियों में कई लब्धियों का नामोल्लेख एक समान है किन्तु कुछ नवीन भी हैं । इनका आनुक्रमिक विवरण इस प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता है१. आमषौ षधिलब्धि आमर्ष का अर्थ है स्पर्श । आमर्ष ही औषधि है जिसकी वह आमषौषधि लब्धि है । इस लब्धि को प्राप्त करने वाला व्यक्ति हाथ आदि के स्पर्शमात्र से रोग को दूर करने में समर्थ होता है। यह लब्धि किसी व्यक्ति के शरीर के एक भाग में उत्पन्न होती है और किसी के संपूर्ण शरीर में उत्पन्न होती है। इस लब्धि को प्राप्त करने वाला व्यक्ति जब रोग को दूर करने के अभिप्राय से अपने या दूसरे के शरीर का स्पर्श करता है तब रोग दूर हो जाता है । इस लब्धि का अधिकारी साधु ही होता है। २. विट् औषधि मूत्र और पुरीष को विट् कहते हैं। विट् ही औषधि है । कई विट् से विष्ठा १३२ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524571
Book TitleTulsi Prajna 1992 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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