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स्तम्भतीर्थ समुद्र-तट पर स्थित, लाट देश का एक समुद्री पत्तन था जो उस समय व्यापारिक दृष्टि से अत्यन्त समृद्ध एवं महत्त्वपूर्ण था। इस पर राजा वीरधवल ने बलपूर्वक अधिकार किया और वस्तुपाल को वहां का मण्डलाधिप (गवर्नर) नियुक्त कर वहां का शासन उसे सौंप दिया था ।४२
इस घटना का ऐतिहासिक विश्लेषण करने के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्यों का उल्लेख आवश्यक है । स्तम्भतीर्थ उस समय ल!ट देश के अधीन था और लाट का शासक चाहमानवंशी राजा 'शंख' था । वस्तुतः, वीरधवल के आक्रमण के समय शंख वहां उपस्थित नहीं था । देवगिरि के शासक यादवराज सिंहण ने लाट पर दो बार आक्रमण किया। प्रथम बार उसे शंख से पराजित होना पड़ा था, लेकिन दूसरे युद्ध में उसने शंख को वन्दी बना लिया था ।" शंख की इसी अनुपस्थिति में वीरधवल ने स्तम्भतीर्थ को अपने अधिकार में कर लिया। सम्भवतः इसीलिए महाकाव्य में इस आक्रमण के सन्दर्भ में किसी प्रकार के संघर्ष का उल्लेख नहीं किया गया है । यह घटना वि० सं० १२८५-८६ के आस-पास की प्रतीत होती है, क्योंकि यादवराज ने लाट देश पर दूसरी बार वि० सं० १२८५ (१२१९ ईसवी) में आक्रमण किया था।४४ मारवाड़ के राजाओं और लणसाकनरेश के मध्य युद्ध
महाकाव्य के पंचम सर्ग में मारवाड़ के राजाओं और लूणसाक नरेश के मध्य युद्ध होने का उल्लेख है। इस युद्ध में मारवाड़ के कई राजाओं ने मिलकर एक साथ लूण साक नरेश का सामना किया था। इसीलिए उनका पक्ष प्रबल हो गया था । फलतः लूणसाक नरेश की सहायतार्थ राजावीरधवल को भी ससैन्य युद्ध-भूमि में जाना पड़ा।४५ महाकाव्य में इस युद्ध के कारणों का स्पष्ट निर्देश नहीं है, तथापि ऐसा अनुमान है कि लूण साक नरेश की बढ़ती हुई शक्ति से मारवाड़ के राजागण आतंकित थे। इसीलिए उन्होंने आपसी विरोध को त्यागते हुए एक साथ मिलकर उसका दमन करना चाहा।
इस युद्ध में वीरधवल सबल होते हुए भी मारवाड़ के राजाओं से घिर गया था, जिससे महामात्य वस्तुपाल भी चिन्तित था । उस समय स्तम्भतीर्थ की रक्षा में नियुक्त वस्तुपाल इस युद्ध में नहीं गया था, क्योंकि लाट देश के राजा शंख से भी उसे सावधान रहना आवश्यक था।
'कीर्तिकौमुदी' में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि इस युद्ध में मारवाड़ के चार राजाओं ने भाग लिया था । लणसाक नरेश ने किसी तरह इन राजाओं से सन्धि कर कर ली थी।४८ सुन्धा पहाड़ी के एक अभिलेख से प्राप्त सूचना के अनुसार मारवाड़ के इन राजाओं में एक जालोर का चाहमान शासक उदयसिंह भी था ।४९ जयसिंहसूरि विरचित वस्तुपालतेजःपाल प्रशस्ति में वीरधवल को मारवाड़ के राजाओं का प्रतिद्वन्द्वी कहा गया है ।'' डॉ० गुलाबचन्द्र चौधरी के लेख से ऐसा प्रतीत होता है कि लूणसाकनरेश, राजावीरधवल का पिता लवणप्रसाद ही था।" इस युद्ध में लूणसाकनरेश की सहायता के लिए वीरधवल के युद्ध-भूमि में जाने से उक्त मत की पुष्टि होती है, लेकिन खण्ड १८, अंक २, (जुलाई-सित०, ९२)
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