SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ था। उसका पुत्र चण्डप्रसाद हुआ जिसने जि नदेव के प्रभाव से महत्त्वपूर्ण कीति अजित की।* चण्डप्रसाद का पुत्र सोम हुआ जो जिनदेव का परमोपासक था और सिद्धराज (जयसिंह) को ही अपना स्वामी एवं सर्वस्व मानता था।" सोम का पुत्र अश्वराज हुआ जिसने अपनी माता सीता को साथ में लेकर सात बार शत्र जय तीर्थ की यात्रा की और अनेक कुपों तड़ागों तथा वापियों का निर्माण कराया । उसकी पत्नी का नाम कुमारदेवी था। वह अत्यन्त धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी। अश्वराज को कुमारदेवी के संसर्ग से तीन पुत्र-मल्लदेव, वस्तुपाल एवं तेजपाल हुए। वस्तुपाल एवं तेजपाल सर्वगुण सम्पन्न, परिपुष्ट शरीर वाले तथा वाक् कला में कुशल थे ।" ___ गुजरात के इतिहास के अध्ययन से पता चलता है कि वहां के समाज एवं राजनोति में वणिकों का सदैव से महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है । प्राग्वाट वंश, जिसे पोरवाड़ या मोढ़ भी कहा जाता है, विशेष रूप से उल्लेखनीय है । वस्तुपाल के पूर्वज इसी वंश के महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों में गिने जाते थे। ये गुजरात की राजनीति में सदैव उच्च पद पर प्रतिष्ठित थे। चंडप, चौलुक्य सम्राट की सलाहकार समिति का सूर्य माना जाता था।" चण्डप्रसाद, सिद्धराज जय सिंह का मंत्री था। सोम, सिद्धराज के खजाने का अधिकारी था।"अश्वराज की पत्नी कुमारदेवी भी आभू मंत्री की पुत्री थी जो सिद्धराज के दरबार में दण्डाधिपति पद पर आसीन था ।४ वस्तुपाल और तेजपाल, भातृयुगल इसी वंश परम्परा के आभूषण थे। वस्तुपाल एवं तेजपाल की मन्त्रिपद पर नियुक्ति वसन्तविलास महाकाव्य में उपर्युक्त स्वप्न में राज्यलक्ष्मी से निर्देश प्राप्त होने पर राजा वीरधवल भ्रातृयुगल को दरबार में उपस्थित होने का निर्देश भेजता है और प्रातःकाल वीरधवल के आदेश पर वस्तुपाल और तेजपाल दरबार में उपस्थित होते हैं। राजा उनकी कुलीनता, विनम्रता, योग्यता और व्यवहार-कुशलता आदि से प्रभावित होकर उनसे मंत्री पद सम्भालने का आग्रह करता है ।५ वस्तुपाल राजा के समक्ष न्याय करने, लालच त्यागने, चाटुकारों से दूर रहने और शांति के मार्ग का अनुसरण करने की विनय करता है और राजा द्वारा स्वीकार कर लिए जाने पर वह अनुज सहित मंत्रीपद ग्रहण कर लेता है । ३६ वसन्तविलास महाकाव्य में वर्णित उपर्युक्त तथ्य की पुष्टि 'कीतिकौमुदी' तथा 'प्रबन्धचिन्तामणि' ग्रन्थों से होती है ।" 'सुकृतसंकीर्तन' के अनुसार वस्तुपाल एवं तेजपाल भीम की सेवा में पहले से लगे हुए थे । वीरधवल के अनुनय विनय पर भीम . ने उन्हें वीरधवल को दे दिया था ।" यही विवरण 'नरनारायणानन्द' महाकाव्य में भी प्राप्त होता है । इस प्रकार स्पष्ट है कि राजा वीरधवल द्वारा वस्तुमान व तेजपाल की मंत्रीपद पद नियुक्ति विशेष आग्रहपूर्वक ही की गयी थी। वीरधवल का लाट प्रदेश पर आक्रमण वसन्तविलास के चतुर्थ सर्ग में राजावीरधवल द्वारा लाटदेश में स्थित स्तम्भतीर्थ (Cambay) पर आकमण कर उसे अपने अधिकार में लेने की घटना वर्णित है। ११० - तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524571
Book TitleTulsi Prajna 1992 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy