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किया । बाल्यावस्था में ही उसने म्लेच्छ राजा को पराजित किया और छोटी ही उम्र में उसकी मृत्यु हो गयी । "
शिशुमूलराज की मृत्यु के बाद उसके छोटे भाई भीम ( भीम द्वितीय) ने राज्यभार को ग्रहण किया। वह अपनी प्रशासनिक कमजोरी के कारण राज्य की स्थिति को सम्भालने में असमर्थ रहा । फलस्वरूप उसके मण्डलीकों ने शासन में हस्तक्षेप एवं विद्रोह करना प्रारम्भ कर दिया । २०
बघेल शाखा का उद्भव
उक्त चौलुक्य नरेशों के अतिरिक्त वसन्तविलास महाकाव्य में कुछ अन्य चौलुक्य शासकों का भी वर्णन प्राप्त होता है जिन्हें इतिहासकार चौलुक्यों की वघेलाशाखा के अन्तर्गत मानते हैं । " यद्यपि महाकाव्य इस शाखा के शासकों के प्रभुत्व में आने के समय का विवरण नहीं दिया गया है, फिर भी इन्होंने किन परिस्थितियों में सत्ता सम्भाली, इसका स्पष्ट रूप से उल्लेख मिलता है ।
जिस समय भीम द्वितीय के मण्डलीकों ने राज्य में आन्तरिक विद्रोह आरम्भ किया और भीम द्वितीय उसे दबाने में असमर्थ हुआ, उसी समय चौलुक्य वंशी 'धवल' के पुत्र अर्णोराज ने आततायियों से भीम के राज्य की रक्षा की और अपने पराक्रम से उनका दमन किया । उसके पश्चात् अर्णोराज का पुत्र लवणप्रसाद एक अत्यन्त पराक्रमी एवं युद्ध - कला में कुशल योद्धा हुआ । उसके पराक्रम से सभी दिशाओं के राजागण भयभीत हुए । केरल, लाट, मालव, अन्ध्र, काञ्ची, कोंकण, जांगल, पाण्ड्य, कुन्तल, वङ्ग तथा कलिंग देश के राजा एवं चौड़ तथा हूण- सभी लवणप्रसाद का लोहा मानते थे ।
लवणप्रसाद का पुत्र वीरधवल हुआ । वह एक वीर और शत्रुओं को नष्ट करने वाला शासक था । उसने अपने साम्राज्य में अव्यवस्था उत्पन्न करने वाले मंडलीकों का दमन करने में अपने पिता लवणप्रसाद का सहयोग किया और अत्यधिक कीर्ति अर्जित की।
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वसन्तविलास महाकाव्य में वर्णित उपर्युक्त तथ्य विविध ऐतिहासिक प्रमाणों से परिपुष्ट होते हैं । वास्तव में भीम द्वितीय को अपने लम्बे शासन काल में अनेक बाहरी एवं आन्तरिक विद्रोहों का सामना करना पड़ा था । ऐसी परिस्थिति में धवल के पुत्र अर्णोराज" ने उसकी सहायक की थी । यहीं से चौलुक्यों की वघेला शाखा का सूत्रपात होता है । सम्भवतः शाखा - परिवर्तन को ही ध्यान में रखकर कवि बालचन्द्रसूरि ने इस स्थल पर अर्णोराज के लिए 'चुलुक्य' शब्द " का प्रयोग किया है, जो चौलुक्य का ही पर्याय है ।
वस्तुपाल के पूर्वज
एक बार चिन्तामग्न राजा वीरधवल को रात्रि के का दर्शन हुआ जिसने वस्तुपाल के पूर्वजों का परिचय राजा तदनुसार, कुछ समय पूर्व सुपसिद्ध प्राग्वाटवंश में चण्डप
खण्ड १८, अंक २, (जुलाई-सित०,
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समय स्वप्न में राज्यलक्ष्मी
के समक्ष प्रस्तुत किया । नाम का एक महापुरुष हुआ
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