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________________ प्रबन्धचिन्तामणि प्रभृति जैन ग्रन्थों में भी वर्णित है । कतिपय शिलालेखों, ताम्रपत्रों एवं ग्रन्थों द्वारा प्राप्त प्रमाणों से ज्ञात होता है कि चौलुक्य नरेशों का सम्बन्ध चन्द्रवंश से था, परन्तु वसन्तविलास महाकाव्य में वर्णित. चौलुक्यों की उत्पत्ति सम्बन्धी विवरण में कवि ने यहां पौराणिक शैली का आश्रय लिया है जिसका उल्लेख तत्कालीन विभिन्न ग्रन्थों में प्राप्त होता है । चौलुक्यवंशी शासक वसन्तविलास महाकाव्य का तृतीय सर्ग इतिहास की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । इस सर्ग में अणहिलवाड़पाटन की राजगद्दी पर शासन करने वाले चौलुक्यवंशी नरेशों का क्रमबद्ध संक्षिप्त इतिहास वणित है । - आदि पुरुष चौलुक्य द्वारा संस्थापित वंश में सर्वप्रथम मूल राज नाम का अत्यन्त प्रभावशाली शासक हुआ। वह राजाओं का मुकुटशिरोमणि था और दुश्मनों को नष्ट करने वाला तथा चतुर्दिक विस्तृत कीत्ति वाला था । वह प्रति सोमवार को सोमेश्वर की तीर्थ-यात्रा करता था। मूलराज के पश्चात् उसका पुत्र चामुण्डराज राजगद्दी पर बैठा । वह एक यशस्वी और वीर शासक था । उसने अपने समस्त दुश्मनों को पराजित किया। - इसके बाद चामुण्डराज के पुत्र वल्लभराज ने सत्ता की वागडोर सम्भाली। उसे 'जगज्झम्पन' (संसार को कंपा देने वाला) कहा गया है। वह अत्यन्त पराक्रमी और शत्रु ओं का विनाशक था ।१२ ___ बल्लभ राज के बाद दुर्लभ राज राजगद्दी का स्वामी हुआ। वह एक धार्मिक प्रकृति का राजा था। उसका चरित्र अत्यन्त उच्चकोटि का था । ..तदनन्तर, भीम ने अणहिलवाड़पाटन की गद्दी को सम्भाला। उसने अवन्तिनरेश भोज को युद्ध में पराजित किया ।" भीम के पश्चात् उसका पुत्र कर्ण सिंहासनासीन हुआ। वह एक विलासी तथा पर स्त्री पर आसक्त राजा था ! अपनी पत्नी के प्रति उसका लगाव बहुत कम था।* कर्ण के बाद उसका पुत्र जय सिंहदेव राजगद्दी पर बैठा । उसने धारानगरी पर विजय प्राप्त कर वहां के राजा को वन्दी बनाया और उज्जयिनी को जीतकर वहां से योगिनी-पीठ को अपने नगर ले आया। जयसिंह ने बर्बरक नामक बैताल को भी पराजित किया । इसीलिए उसे 'सिद्वराज' की उपाधि प्राप्त हुई ।१६। - सिद्धराज जयसिंह का उत्तराधिकारी कुमारपाल हुआ। उसने केदार तथा सोमेश्वर तीर्थों का जीर्णोद्धार और अनेक बिहारों का निर्माण कराया। उसने मालवनरेश बल्लाल, तथा जांगल एवं कोंकण के राजाओं को पराजित किया। कुमारपाल ने उत्तराधिकारहीनों की सम्पत्ति का अधिग्रहण करना भी त्याग दिया।" ... कुमारपाल के बाद अजयपाल गद्दी पर बैठा । वह एक पराक्रमी और आकर्षक व्यक्तित्व-सम्पन्न शासक था। जांगल के राजा ने अजयपाल को विशिष्ट उपहार दिया था।८ .. तत्पश्चात् अजयपाल के पुत्र शिशुमूलराज (मूलराज द्वितीय) ने सिंहासन ग्रहण १०८ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524571
Book TitleTulsi Prajna 1992 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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