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________________ 'वसंतविलास' में वर्णित ऐतिहासिक तथ्यों का महत्त्व Oडॉ० केशव प्रसाद गुप्त जैन-संस्कृत वाङ्मय के ऐतिहासिक महाकाव्यों में 'वसन्त विलास" महाकाव्य का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस महाकाव्य में गुजरात के चौलुक्यवंशी नरेश वीरवधल के इतिहास-प्रसिद्ध महामात्य वस्तुपाल के जीवन-चरित पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है। वस्तुपाल के अपर नाम वसन्त या वसन्तपाल' के आधार पर महाकाव्य का नाम 'वसन्तविलास' रखा गया है । गुजरात के मध्यकालीन इतिहास की जानकारी के लिये यह महाकाव्य अत्यन्त उपयोगी है । तेरहवीं शताब्दी के मध्यकाल में मूलतः ताड़पत्रों पर लिखे गये 'वसन्तविलास' महाकाव्य के रचयिता चन्द्रगच्छीय जैनाचार्य हरिभद्रसूरि के शिष्य बालचन्द्रसूरि हैं । चौदह सर्गों में निबद इस महाकाव्य में उच्चकोटि की साहित्यिकता भी विद्यमान है। 'वसन्तविलास' महाकाव्य में उपलब्ध ऐति ह्य का विश्लेषण अग्राङ्कित शीर्षकों के अन्तर्गत प्रस्तुत किया जा रहा हैआदिपुरुष 'चौलुक्य' की उत्पत्ति 'चौलुक्य' शब्द 'चालुक्य' शब्द का संस्कृत रूप है। गुजरात के सोलंकी क्षत्रियों के लिए अब तक चौलुक्य ताम्रपत्रों में जो वंशावली दी हुई है, उन सबमें एक ही शब्द 'चौलुक्य' का प्रयोग किया गया है ।' चौलुक्य वंश की उत्पत्ति के सम्बन्ध में वसन्तविलास महाकाव्य में कहा गया है कि बहुत समय पहले राक्षसों के समूह से संसार की रक्षा करने के लिए क्षीर सागर से विष्णु की तरह ब्रह्मा के सन्ध्यापूजन के समय उनके चुलुक-जल से हाथ में तलवार लिए हुए एक वीर पुरुष की उत्पत्ति हुई । उसका नाम 'चौलुक्य' हुआ । उसने राक्षसों का संहार करके समस्त पृथ्वी पर शासन किया। चौलुक्यों की उत्पत्ति विषयक मान्यताओं में 'चुलुक सिद्धांत' एक महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है। इस सिद्धांत के समर्थकों ने इस वंश के आदि पुरुष की उत्पत्ति ब्रह्मा के चुलुक-जल से मानी है। वसन्तविलास महाकाव्य के उक्त वर्णन से मिलता-जुलता विवरण कश्मीरी कवि विल्हण ने 'विकमाङ्कदेवचरित' (वि स. ११४३) महाकाव्य में दिया है। तदनुसार ब्रह्मा के चुलुक-जल से एक वीर पुरुष उत्पन्न हुआ जिसके वंश में हरीत और मानव्य हुए। इन क्षत्रियों ने पहले अयोध्या में शासन किया। तदनन्तर, दक्षिण दिशा में एक के बाद दूसरी विजय करते हुए आगे बढ़े।' यही सिद्धांत अल्प परिवर्तन के साथ कुमारपाल की वडनगर प्रशस्ति, द्वचाश्रयकाव्य' खण्ड १८, अंक २, (जुलाई-सित०, ९२) १०७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524571
Book TitleTulsi Prajna 1992 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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