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________________ तुलनीय एगो मे सासओ अप्पा नाण-दंसणसंजुओ। सेसा मे बहिरा भावा सम्वे संजोगलक्खणा ॥२७।। संजोगमूला जीवेणं पत्ता दुक्खपरपरा । तम्हा संजोगसम्बन्धं सव्वं भावेण वोसिरे ।।२।। सम्म में सव्वभूएसु वेरं मझ न केणई । आसाओ वोसिरित्ताणं समाहिं पडिवज्जए ॥२२॥ -आतुर प्रत्याख्यान ये तीनों गाथाएं आतुर प्रत्याख्यान से सीधे वरांगचरित में गई या मूलाचार के माध्यम से वरांगचरित में गई यह एक अलग प्रश्न है । मूलाचार यापनीय ग्रन्थ है अतः यदि ये गाथाएं मूलाचार से भी ली गई हों तो भी जटासिंहनन्दि और उनके ग्रन्थ वरांगचरित के यापनीय होने की ही पुष्टि होती है । यद्यपि कुन्दकुन्द के ग्रन्थों में भी ये गाथाएं पायी जाती हैं, किन्तु इतना निश्चित है कि कुन्द-कुन्द ने भी ये गाथाएं मूलाचार से ही ली होंगी । और पुनः मूलाचार में आतुरप्रत्याख्यान की ली गई सभी गाथायें समाहित कर ली गई हैं, अतः अन्ततोगत्वा तो ये गाथायें आतुर प्रत्याख्यान से ही ली गई हैं। आवश्यकनियुक्ति की भी निम्न दो गाथाएं व रांगचरित में मिलती हैं हयं नाणं कियाहीणं, हया अन्नाणओ किया। पासंतो पंगुलो दड्डो धावमाणो अ अंधओ ।।१।। संयोगसिद्धिइ फलं वयंति, न हु एगचक्केण रहो पयाइ । अंधो य पंगू य वणे समिच्चा, ते संपउत्ता नगरं पविट्ठा ॥२॥ तुलनीय क्रियाहीनं च यज्शानं न तु सिद्धि प्रयच्छति । परिपश्यन्यथा पंगु मुग्धो दग्धो दवाग्निना ॥६६॥ तो यथा संप्रयुक्तौ तु दवाग्निमधिगच्छतः । तथा ज्ञानचरित्राभ्यां संसारान्मुच्यते पुमान् ॥१०१।। -वारांगचरित सर्ग २६ आगन, प्रकीर्णक और नियुक्ति, साहित्य का यह अनुसरण जटासिंहनन्दि और उनके ग्रंथ को दिगम्बरेत र यानीय या कुर्चक सम्प्रदाय का सिद्ध करता है । ८. जटा सिंहनन्दि ने न केवल सिद्धसेन का अनुसरण किया है अपितु उन्होंने विमलसूरि के पउमचरिय का भी अनुसरण किया है । चाहे यह अनुसरण उन्होंने सीधे रूप से किया हो या रविषेण के पद्म चरित के माध्यम से किया हो. किन्तु इतना सत्य है कि उन पर यह प्रभाव आया है । वरांगचरित में श्रावक के व्रतों की जो विवेचना उपलब्ध होती है वह न तो पूर्णतः श्वेताम्बर परम्परा के उपासकदशा के निकट है और न पूर्णतः दिगम्बर परम्परा द्वारा मान्य तत्त्वार्थ के पूज्यपाद् देवनन्दी के सर्वार्थ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524571
Book TitleTulsi Prajna 1992 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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