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श्रीमद्भागवत पुराण (३-२-३-१०) में दिया कालमान नीचे अनुसार हैंदो परमाणु = १ अणु ; ३ अणु = १ त्रसरेणु तीन त्रस रेणु एक त्रुटि ; १०० ७ टि- १ वेध तीन बेध= एक लव; तीन लव १ निमेष तीन निमेष=एक क्षण; पांच क्षण-१ काष्ठा १५ काष्ठा= एक लघु ; १५ लघु-१ नाडिका
दो नाडिका=एक मुहूर्त, ३० मुहूर्त= १ अहोरात्र । न्यूनतम अवयवः मुहूर्त
पलक झपने अथवा लघु अक्षर उच्चारण को न्यूनतम कालांश कहा गया है किन्तु व्यवहार में मुहूर्त ही सबसे छोटी कालावधि होती है । 'मुहूर्त'-शन्द ऋग्वेद में कई स्थानों पर प्रयुक्त है । 'मुहूतं' की निरूक्ति करते हुए यास्क मुनि कहते हैं
मुहर्तम् एवैः अयनैः अवनैर्वा । मुहूर्तः महुः ऋतुः । ऋतु अर्ते गति कर्मणः । मुहुः मूढः इव कालः ।
अर्थात् मुहूर्त बहुत छोटा समय है जो मुहुः और ऋतुः से निरूक्त होता है। ऋग्वेदीय वेदांग ज्योतिष में एक मुहूत्तं का मान दो नाडिका तुल्य है किन्तु कौषीतकि उपनिषद् (१-३) में लिखा है- "तस्य ह वा एतस्य ब्रह्मलोकस्यारो हृदः । मुहूर्ता येष्टिहा:-"कि मुहूर्त का ही दूसरा नाम येष्टिका है।।
ऋग्वेद में 'मुहूर्त' शब्द (३-३३-५) शुतुद्री (सतलुज) और विपाशा (व्यास) नदी के मिलन क्षण को बताने के लिए प्रयुक्त है। दूसरे स्थल पर (३.५३.८) 'परिमुहूत्तं' का प्रयोग प्रातः सवन, माध्यन्दिन सवन और तृतीयसवन के मध्य किंचित् विश्राम को बताने के लिए हुआ है। ___ शतपथ ब्राह्मण (१-८-३-१७ और २-३-२५) में भी 'मुहूत्तं' का थोड़े समय के अर्थ में प्रयोग है । वहां (१०-४-२-१८ और १२-३-२५) दिन और रात में पन्द्रहपन्द्रह मुहूर्त और वर्ष में (३० x ३६० =) १०८०० मुहूर्त होने का भी विवरण उपलब्ध है।
तैत्तिरीय संहिता (३-१०-१-३) में दिन और रात के पन्द्रह-पन्द्रह मुहत्तों के नाम दिए हैं जो इस प्रकार हैं१. चित्रः
९. तपन २. केतुः
१०. अभितपन्, ३. प्रमान्,
११. रोचनः ४, आभान्,
१२. रोचमानः ५. संभान्,
१२. शोभनः ६. ज्योतिष्मान्
१४. शोभमानः और ७. तेजस्वान्
१५. कल्याण ८. आतपन्,
खण्ड १८, अंक २ (जुलाई-सित०, ६२)
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