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________________ से भी यह कृति अच्छी बन पड़ी है। ऐसे अच्छे शोध ग्रन्थ के लेखन तथा उसके निर्देशन के लिए लेखक और निर्देशक दोनों ही बधाई के पात्र हैं । अंत में सुझाव के रूप में इस ओर ध्यान आकर्षित करना उचित होगा कि विषय-प्रवेश के पूर्व सन् १८१८ के पहिले के, १९वीं सदी के राजस्थान के इतिहास के सन्दर्भ में बीकानेर राज्य की स्थिति की संक्षिप्त किंतु प्रामाणिक जानकारी देकर बीकानेर राज्य की भौगोलिक स्थिति उसके व्यापारिक मार्गों तथा उससे लगे प्रदेशों का मनचित्र और जोड़ देने से जो कमी खटकती है वह भी दूर हो जाती । -डा० भगवानदास गुप्त भूतपूर्व अध्यक्ष, भारतीय इतिहास एव संस्कृति विभाग, बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय ११३, खत्रयाना मार्ग, झांसी- २८४००२ २. कथ्य अपना तथ्य पराया, ३. बिम्ब प्रतिबिम्ब - लेखक - मुनि मोहनलाल सुजान, प्रकाशक - आदर्श साहित्य संघ, चूरू १९८९, पृ० १६९, मूल्य १५ रुपए एवं पृ० १९६, मूल्य २० रुपए । आचार्य तुलसी के शिष्य मुनि मोहनलाल सुजान की लघु बोध कथाओं के ये दो संकलन बरबस ही पाठकों का ध्यान आकृष्ट करते हैं । लोकजीवन में चलते आ रहे किस्सों को सरल शब्दों में लिखकर सुरक्षित करने का प्रशंसनीय प्रयास मुनिजी ने किया है । शैली इतनी रोचक और प्रभावी है कि एक बार हाथ में लेने पर आद्योपांत पढ़कर ही पाठक विश्राम लेता है । इन कथाओं में नीति, सदाचार, सत्य, न्याय बुद्धिमानी आदि उन्नत वृत्तियों की व्यंजना है और जीवन में पद-पद पर आने वाली समस्याओं से जूझने की सीख भी है । इन कथाओं में राजा, बादशाह, ठग, चोर, ब्राह्मण, बनिए, जाट, पैगंबर, फरिश्ते, भिखारी, ऋषि, लकड़हारे यानी आम आदमी से लेकर उच्चतम वर्ग के लोग सबके सब अपनी विचित्रताओं के साथ अंकित हैं । कुछ कहानियां अकबर बीरबल से सम्बन्धित हैं, कुछ विक्रमादित्य के पराक्रम और बुद्धिमत्ता की स्मारिकाएं हैं । बनियों की धर्मनिष्ठता, सजगता, ब्राह्मणों का तप त्याग, निर्धनता आदि के जीते-जागते चित्र इनमें हैं। हर कथा में कुछ-न-कुछ रचनात्मक संकेत अवश्य मिलेंगे | ये कहानियां अनेक स्रोतों से ली गई हैं । ब्राह्मण, जैन, इस्लाम तीनों परंपराओं की कथाएं यहां एक साथ हैं । कबीर और लोई से संबद्ध बोध कथाओं का संकलन करके सच्चे संतमत को भी आदर दिया गया है। ललित वाङ्मय की कलात्मकता और चमत्कृति के लिए न तो यहां अवकाश ही है न उसकी आवश्यकता ही है । इन कथाओं की भाषा बहुत सरल, सीधी और यथातथ्य वर्णन करने में समर्थ है । पुस्तक की छपाई, मुख पृष्ठ की साज-सज्जा आदि आकर्षक हैं । खण्ड १८, अंक १ ( अप्रैल-जून, ६२ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only ७३ www.jainelibrary.org
SR No.524570
Book TitleTulsi Prajna 1992 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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