SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 80
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बीकानेर और बीकानेर से बाहर अंग्रेजी साम्राज्य के प्रदेशों में खूब फला-फूला । अंग्रेजी सरकार ने भी अपनी राजनीतिक और आर्थिक नीतियों के प्रचार और प्रसार में इस वर्ग का भरपूर उपयोग किया । इस प्रकार बीकानेर के व्यापारियों और अंग्रेजी सरकार के पारस्परिक सहयोगात्मक सम्बन्धों का जो सिलसिला सन् १८१८ ई० में शुरू हुआ वह अनवरत रूप से १९१४ ई० के प्रथम महायुद्ध तक और उसके बाद भी चलता रहा । अंग्रेजी सरकार ने स्वयं से उन्हें चिपकाये रहने के लिए उनके प्रमुख लोगों को रायबहादुर, दीवान बहादुर के०सी०आई०ई०, सर, राजा, शेरिफ, ट्रेजरार, पोर्ट कमिश्नर, कारपोरेशन आदि की उपाधियां और पद प्रदान किये और इस प्रकार उनके द्वारा मारवाड़ी व्यापारियों में होड़ की भावना उत्पन्न कर उन्हें तब चल रहे राष्ट्रीय आंदोलन की मुख्य धारा से अलग रखने के काफी सफल प्रयत्न भी किए। किंतु २०वीं सदी के प्रथम अर्द्धांश में स्वतंत्रता के पूर्व अन्य राजस्थानी राज्यों के व्यापारियों की तरह बीकानेर के मारवाड़ी भी अपने हितों के प्रति सजग और उनकी बढ़ती हुई व्यापारिक गतिविधियों को रोकने की अंग्रेजों की दुरभिसंधियों से भलीभांति परिचित हो गये थे । अतएव वे अब केवल इंग्लैंड के लिए कच्चा माल निर्यात करने और उससे इंग्लैंड में बना माल भारत में खपाने के लिए एजेंट के रूप में काम करने के लिए तैयार न थे । अंग्रेजी सरकार और उसके अधिकारियों से सीखे हथकंडों और अपनी बढ़ती पूंजी के प्रयोग से वे इंग्लैंड के उद्योगों को भारत में स्थापित करने, देशी रियासतों और अंग्र ेजी साम्राज्य के प्रांतों में नए-नए धन्धे खोलकर वे न केवल भारतीय अर्थव्यवस्था को हाथ में लेना चाहते थे, बल्कि अन्तराष्ट्रीय व्यापार में भी अंग्र ेजों को चुनौती देने के लिए उद्यत हो उठे थे । इसलिए उनकी अंग्रेजी सरकार से टकराहट और फलस्वरूप उनका राष्ट्रीय स्वातंत्र्य आंदोलन में उतरना सुनिश्चित था । फिर यह तो था ही कि इन मारवाड़ी व्यापारियों में बहुत से राष्ट्रीय भावना से भी निर्विवाद रूप से प्रेरित थे और उन्होंने क्रांतिकारी, गांधीवादी आंदोलनों तथा १९४२ के भारत छोड़ो आंदोलन आदि में भाग लिया था और आर्थिक योगदान भी दिया था । कहना न होगा यह मारवाड़ी व्यापारी वर्ग का प्रगतिशील स्वरूप था । डॉ० गिरिजाशंकर का यह ग्रन्थ दस अध्यायों में विभाजित है । इन अध्यायों में बीकानेर में अंग्रेजी प्रभुसत्ता की स्थापना के बाद सामंतों का पतन तथा व्यापारी वर्ग का उत्थान, व्यापारिक मार्ग, आयात-निर्यात बीकानेरी, व्यापारियों का निष्क्रमण, व्यापारियों का प्रभावशाली वर्ग के रूप में विकास, उद्योगीकरण में योगदान, प्रमुख व्यापारी घराने, राष्ट्रीय आंदोलन में योगदान, शिक्षा जनकल्याण के क्षेत्र और आधुनिक सन्दर्भ में मारवाड़ी व्यापारी वर्ग से संबंधित विस्तृत प्रामाणिक विवरणसूचनाएं आंकड़े और तालिकाएं हैं । यथा स्थान उचित सन्दर्भ, टिप्पणियां दी गई हैं । ग्रन्थ के अन्त में सर्वांगपूर्ण सन्दर्भ सामग्री और ग्रन्थ में आए क्षेत्रीय शब्दों की भावार्थ-सूची से ग्रन्थ का महत्त्व और बढ़ गया है । भाषा-भाव अभिव्यक्ति की दृष्टि तुलसी प्रज्ञा ७२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524570
Book TitleTulsi Prajna 1992 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy