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के इतिहास (ख्यात) का महत्त्वपूर्ण का लेखन शुरू किया था। उनके द्वारा लिखी हुई ख्यात अनेक दृष्टियों में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। आप द्वारा लिखित तेजसार का व्याख्यान पखवाड़ा तथा 'विमल विवेक विचार' आदि रचनाएं आज भी संघीय साहित्य के गौरव को बढ़ा रही है।
चतुर्थाचार्य जयाचार्य के समसामयिक मुनिश्री छोगजी की जय छोग सुजना विलास कृति उपलब्ध है । इस कृति में जयाचार्य की सं० १९२७ की लाडनूं से जयपुर और जयपुर से पुनः लाडनूं तक की यात्रा का तथा जयपुर-प्रवास का बड़ा ही हूबहू आंखों देखा वर्णन है।
फिर हम कालगणी के जमाने में आए तो देखेंगे कि मुनिश्री चांदमलजी के साहित्य में शुद्ध काव्य तत्त्व हैं। उनके डिगलपिंगल तथा चित्रबद्ध छंद सचमुच में पाठक को चकित करने वाले हैं । मुनिश्री नथमलजी, मुनिश्री सोहनलाल जी आदि संतों ने भी प्रभुत् साहित्य लिखा है । मुनिश्री नथमलजी ने स्तुतियों तथा व्याख्यानों की सुधड़ के रूप में २८६१२ पद्य परिमाण रचना की हैं तो मुनिश्री सोहनलाल जी ने डिंगलपिंगल आदि में उनके पुस्तकें लिखीं है। उनकी प्रकाशित पुस्तकों के नाम इस प्रकार हैं : १, स्वर्ण कलश २ सोहन काव्यामृत ३ सोहन के सुनहले व्याख्यान ४ सोने के पासे ५ सोने की सुगन्ध ६ सोहन के सुरीले स्वर ७ सोहन संगीत ८ महाबल मलया सुन्दरी आदि २ कुछ साहित्य अप्रकाशित है। मुनिश्री सोहनलालजी अपने जमाने के प्रसिद्ध संत-साहित्यकार रहे हैं। उनके छंदों का, सोहन भनंत का ट्रेडमार्का अभी भी लोगों के कानों में गूंज रहा है। उनका भक्ति रस भी अनूठा था। सेवाभावी मुनिश्री चंपालाल जी के भक्तिकाव्य भी अनूठे हैं।
श्हैर में महान तान मान को वितान छायो, ठोर-ठोर में न आज हर्ष को प्रमान है । 'काल' भगवान सो निधान ज्ञान, दैवत समूह च्यार तीरथ सुजान है ॥ अमृत समान वान झड़ी बरसाय रहे, ऐसो दरबार तो मिलै न ठोर आन है। 'सोहन' भनत जरा ध्यान से निहारो भव्य, ओ नगर 'जोधान' है कि इन्द्र को विमान है।
_ 'स्वर्ण कलश' से
खंड १८, अंक 1 (अप्रैल-जून, ६२)
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