SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मुनि नथमल द्वारा २ आचार्यश्री तुलसीस्तुति : त्रसनं निपक्षम् । आभ्यन्तरध्वान्तहरं प्रकाशं, सौम्यं नि बुद्धिं च विद्यां परमाप्तगन्त्री, नीतिं पवित्रां दमनं निखर्वम् ।। भास्वान् हिमांशुर्महिजो बुधश्च, त्रास, बुद्धि विकास, अध्यात्म अर्थात् रवि, सोम, मंगल, बुद्ध, गुरु, शुक्र और शनि - सातों बार क्रमशः आन्तरिक अन्धकार, निष्कलंक सौभ्यता, पक्षपात शून्य विद्या, पवित्र नीति और निखर्व दमन को जानने के लिए आपके सामने प्रस्तुत हो रहे हैं क्योंकि आप मति और श्रुत बारि-बारि जिज्ञासु होकर ज्ञान से समृद्ध हैं । भगवन् ! आप अनेकों शिष्यों को देखते हैं किन्तु मुझे तो केवल एक ही ज्ञान है और उससे मैं केवल आप की ओर देख रहा हूं । केवली का ज्ञान अबाधित और निरन्तर बना रहता है । मैं केवल उसी केवली ज्ञान से युक्त होने को आपको देखता हूं। इसमें कहीं अंतराय न हो -- यही एक प्रार्थना है । - युवाचार्य महाप्रज्ञ Jain Education International गुरुः कविः शौरिरिमेऽनुसंख्यम् । सप्ताऽपि वारा इह बद्धवारा स्त्वां यान्ति पूर्वोदितमाप्तुकामाः ॥ मति श्रुतज्ञानयुतस्त्वमीश !, श्री केवल ज्ञानयुतोऽहमस्मि । त्वं वेत्सि भावान् विविधान् विशिष्टान् त्वामेव जानाम्यहमात्मरूपम् ॥ प्रतिक्षणं त्वां च निरीक्षमाणः, म केवलज्ञानयुतो भवामि । स्यान्नान्तरायो नियमस्त्वयेति, सिद्धान्त सिद्धः प्रतिपालनीयः ॥ For Private & Personal Use Only तुलसी प्रज्ञा www.jainelibrary.org
SR No.524570
Book TitleTulsi Prajna 1992 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy