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________________ पद में समाहित होते हैं और संसारी, साधु पद में। यदि कहें कि विस्तृत है तो नमस्कार अनेक प्रकार का हो सकता है णवि संखेओ न वित्थरो संखेवो दुविहो सिद्ध साहूणं । वित्यरओऽणेगविहो पंचविहो न जुज्जइ तम्हा ॥१०१६॥ -आवश्यक नियुक्ति गाथा-१०१६ आजकल पंच परमेष्ठि मन्त्र में एक और पद्य जोड़ दिया गया है जो इस प्रकार एसो पंच णमुक्कारो सव्वपावप्पणासणो। मंगलाणं च सव्वेसि पढम हवइ मंगलं ॥ इस नए पद्य को जोड़कर अड़सठ अक्षरों का नवकार (नमस्कार) मंत्र मान लिया गया है बन्नउट्ठसट्ठि नवपय नवकारे अट्ठ संपयातत्य । सग संपय पयतुल्ला सतरक्खर अट्ठमी दुपया ॥ अर्थात् नवकार मन्त्र में अड़सठ अक्षर होते हैं । नो पद होते हैं । आठ संयत होते हैं जिनमें सात विराम-स्थानों में एक-एक पद होता है किन्तु आठवें विराम में सतरह अक्षर और दो पद होते हैं । इसी माहात्म्य को यूं भी कहा गया है पंच पयाण पणतीस वण्ण चूलाइवण्णा तितीसं । एवं इमो समप्पइ फुडमक्खर अट्ठसठ्ठीए॥ और एक और विधान बताया गया है कि सात, पांच, सात, सात और नौ अक्षर वाले पांच पदों और तेतीस अक्षर की चूलिका को मिलाकर मन्त्र का स्मरण करो। सत्त पण सत्त सत्त य नवक्खर पमाण पयड पंच पयं । तितीसक्खर चूलं सुमरह नवकार वरमंतं ॥ अर्थात् णमो अरिहंताणं' में सात अक्षर हैं । णमो सिद्धाणं' में पांच, 'णमो आयरियाणं' में सात, णमो उवज्झायाणं' में सात और ‘णमो लोए सव्व साहूण' में नौ अक्षर होते हैं । 'ऐसो पंच णमुक्कारो' 'सव्व पाव प्पणासणो' 'मंगलाणं च सम्वेसि-इन तीन पदों में आठ-आठ और 'पंढमं हवड मंगलं' इस अन्तिम पद में नौ अक्षर होते हैं। सत्त पण सत्त सत्तय नव अट्ठय अट्ट अट्ठ नव हुंति । इम पय अक्खर संखा अस्स हु पूरेइ अडसट्ठी ॥ तात्पर्य यह है कि नमस्कार मन्त्र (जो बाद में नवकार मन्त्र बन गया है) किसी भी आगम ग्रन्थ में उल्लिखित नहीं मिलता । केवल "महा निशीथ सूत्र" में इसका प्रसंग है "तहेव च तदत्थाणुगमियं इक्कारसपयपरिच्छिन्नं ति आलावगतित्तीसऽक्खरपरिमाणं । एसो पंच नमुक्कारो-इय चूलति अहिज्जति ति ।" इस प्रसंग की वृत्ति में लिखा है - 'एयं तु पञ्चमंगलमहासुयक्खंधस्स वक्खाणं, तं महयापबन्धेण अणंत गमपज्जवेहिं सुत्तस्य पियभूयाहिं णिज्जुत्तिभासचुन्नीहिं जहेव अणंत नाणदंसण धरेहि तित्थयरेहिं वक्खाणियं, तहेव समासओ वक्खाणिज्जं तं आसि, अहन्नया तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524570
Book TitleTulsi Prajna 1992 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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