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तुलब्याजमा
खण्ड १७
जनवरी-मार्च, १९६२
अंक ४
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अनुक्रमणिका
पृष्ठ १७६
१६७
१. सम्पादकीय २. सप्तर्षियों से कालगणनाएं ३. हिन्दी काव्य में पंच महाव्रत ४. जैन दर्शन और पाश्चात्य मनोविज्ञान की तुलना ५. जैन संस्कृति का विराट् प्रतिबिम्ब-जैन कला दीर्घा ६. तेरापंथ का संस्कृत साहित्य : उद्भव और विकास ७. आचार्य भिक्षु का राजस्थानी साहित्य ८. तीर्थंकरों के नामकरण का हेतु और उनका व्युत्पत्ति लभ्य अर्थ ६. पुस्तक-समीक्षा १०. पत्राक्ष :
२०३ २०७ २१५ २१६ २२६ २३८
English Section
SM
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1. Every Jain should Learn Sanskrit 2. Some Particulars of the Jeynes 3. On the Concept of Truth in Jainism 4. Non-violent Action in Jain Ethics 5. Kalki Incarnation 6. Internal Force of life 7. Book Review
'तुलसी प्रज्ञा' के खण्ड-१७ की अनुक्रमणिका
102 114 115 120 १२३
नोट-इस अंक में प्रकाशित लेखों में व्यक्त विचार लेखकों के हैं। यह आवश्यक नहीं है ... कि सम्पादक-मंडल अथवा संस्था को वे मान्य हों।
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