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________________ सामान्य प्राकृत भाषा में मध्यवर्ती त-द [] डॉ० के० आर० चन्द्र सामान्य प्राकृत भाषा के अन्तर्गत वररुचि के 'प्राकृत प्रकाश' (E.B. cowell ) में मध्यवर्ती त = द का उल्लेख तीन प्रकार से मिलता है [१] नियम कोई अन्य है परन्तु उदाहरण के रूप में दिए गए शब्दों में त के स्थान पर द मिलता है । [२] कुछ शब्दों में त का द होता है ऐसा नियम दिया गया है । [३] विभक्ति और कृदन्त प्रत्ययों में त का द मिलता है परन्तु वर्तमानकाल के --- सि, – ते, आज्ञार्थ - तु, हेत्वर्थक ---तुं और सम्बन्धक भूत् कृदन्त —— तूण के स्थान पर कहीं पर भी उदाहरणों में या नियम में त के स्थान पर द नहीं मिलता है । [१] उदाहरणों में सूत्र – उदृत्यादिषु १.२९ अर्थात् ऋ का उ होने के उदाहरणों में उद्दू, विउदं, संवदं णिव्वदं (ऋतुः, विवृतम, संवृतम्, निर्वृतम्) । सूत्र २-२ - मध्यवर्ती अल्पप्राण व्यंजनों के लोप के उदाहरणों में रअदं (रजतम्) । सर्वनामों में - सूत्र - ६.२० – पं० ए० व० की विभक्ति के उदाहरण - एदाहि । सूत्र - ६.२२ – तदेतदोः सः साव नपुंसके —एदे, एवं सूत्र - ६.२६ - युष्मद् के प्र० ए० व० के उदाहरणों में तं आगदो, तुमं आगदो । सूत्र --- ६.३४- युष्मद् के पंचमी एक वचन उदाहरण में-- तुज्झेंहि तुम्हें हि-तुम्मे हिं । सूत्र - ६.३५ - युष्मद् के पंचमी ए० व० के उदाहरणों में-तत्तो आगदो, तुमाहि आगदो । सूत्र---६.३६ - युष्मद् के पंचमी ब० व० के उदाहरण में— तुम्हासुं तो आगदो । निपात के उदाहरण में सूत्र - ६.५ पेक्ख इर तेण हदो । [२] कुछ शब्दों में त का द होने का नियम : सूत्र – २.७, ऋत्वादिषु तो दः उदू, रअदं, आअदो, णिव्वुदी, आउदी, संवृदी, सुइदो, आइदी, हदो, संजदो, विउदं संजादो, संपदि और पडिवद्दी । खण्ड १७, अंक ३ ( अक्टूबर-दिसम्बर, 8१ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only १५७ www.jainelibrary.org
SR No.524568
Book TitleTulsi Prajna 1991 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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