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सूरि के अनुसंधान - निष्कर्ष अवहेलनीय नहीं हैं, जबकि 'अंगुत्तरनिकाय' पर सहसा भरोसा नहीं किया जा सकता । श्रावस्ती में हुए २४ अथवा १६ वर्षावासों का नैरन्तर्य ही सबसे बड़ा सबूत है कि यहां [ श्रावस्ती ] पहुंचकर कुछ गड़बड़ हुई है - यह अलग शोध का विषय बन गया है ।
हमने कभी अनुमान का आश्रय लेते हुए महावीर और बुद्ध का एक स्थानीय वर्षावास १२४३ ई० पूर्व का लिखा था ।' डॉ० सोलंकी के उक्त संक्षिप्त नोट ने उसमें जान फूंक दी है । यदि अंगुत्तरनिकाय के पारम्परिक वर्षावासीय क्रम को देखें, तो १२४० ई० पूर्व का समय आता है । यदि संशोधित वर्षावास कमावली को देखें, तो १२४५ ई० पू० का समय आता है । फिर हम पूछते हैं- महावीर और बुद्ध के एक स्थानीय वर्षावास के लिए १२४३ ई० पू० का अनुमान गलत क्यों है ?
संदर्भ
१. शोध पत्रिका, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् पटना वर्ष २६ / १ १९८६ ईसवी । पृष्ठ ३१/ पंक्ति ७.
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सामञ्ञफलसुत्त में अजातशत्रु संबंधी उल्लेख
"एवं बुत्ते, राजा मागधो अजातसत्तु वेदेहिपुत्त भगवन्तं एतदोवाचअभिक्कन्तं, भन्ते, अभिक्कन्तं, भन्ते ! सेय्यथापि, भन्ते, निक्कुज्जितं वा उक्कुज्जेय्य, पटिच्छन्नं वा विवरेय्य, मूल्हस्स वा मग्गं आचिक्खेय्य, अन्धकारे वा तेल पज्जोतं धारेय्य चक्खुमन्तो रूपानि दक्खन्ती ति, एवमेवं, भन्ते, भगवता अनेक परियायेन धम्मो पकासितो । एसाहं, भन्ते, भगवन्तं सरणं गच्छामि धम्मं च भिक्खुसङ्घ च । उपासकं मं भगवा धारेतु अज्जतग्गे पाणुपेतं सरणं गतं ।
सामञ्ञफल सुत्तं निट्ठितं दुतियं दीघनिकाय ( २.६.१०१) पृ० ७४
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- ( नालन्दा- देवनागरी संस्करण, १९५८ )
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तुलसी प्रज्ञा
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