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________________ आत्मा का वजन D समणी मंगलप्रज्ञा भारतीय दर्शन ने आत्मा के सम्बन्ध में विविध प्रकार से विचार किया है। उसका आकार-प्रकार कैसा है ? वह व्यापक है अथवा सीमित ? उसका स्वरूप कैसा है? उसका कार्य क्या है ? उसका अस्तित्व त्रैकालिक है अथवा वातैमानिक ? आदि अनेक प्रश्नों पर प्रायः सभी भारतीय दार्शनिकों ने ऊहापोह किया है और निष्कर्षतः अपनाअपना स्वतन्त्र अभिमत भी प्रस्तुत किया है। आत्मा भारहीन है अथवा भारयुक्त ? इस प्रश्न पर जैन दर्शन के अतिरिक्त किसी भी भारतीय या पाश्चात्य दार्शनिक का ध्यान आकृष्ट हुआ हो, ऐसा दृष्टिगोचर नहीं होता । जैन-दार्शनिकों ने आत्मा के वजन के बारे में चिन्तन किया है । 'रायपसेणिय सूत्र' में केशी श्रमण एवं राजा प्रदेशी के संवाद से यह तथ्य प्रकट होता है । राजा प्रदेशी परम नास्तिक था, आत्मा जैसी किसी भी वस्तु में उसका विश्वास नहीं था। आत्मा है या नहीं इसके लिए उसने अनेक व्यक्तियों पर विभिन्न प्रकार के प्रयोग किये । वह श्रमण केशी से कहता है-मुनिप्रवर ! आत्मा जैसे किसी भी पदार्थ का अस्तित्व नहीं है, क्योंकि मैंने चोर को मरने से पहले तौला तथा मरने के तुरन्त बाद उसका वजन किया, किन्तु उसके वजन में कोई अन्तर नहीं आया, अतः आत्मा का अस्तित्व स्वीकार नहीं किया जा सकता। वैज्ञानिकों ने आत्मा के वजन के संदर्भ में प्रयोग किये हैं। आत्मा को तोलने के लिए उन्होंने अत्यन्त संवेदनशील तराजू का निर्माण किया है। राजा प्रदेशी के पास उस समय इतने संवेदनशील मापक यन्त्र नहीं थे, जितने आज उपलब्ध हैं। इसके कारण ही प्रदेशी को मरने के बाद और मरने के पहले शरीर में अन्तर मालूम नहीं हुआ। आज के वैज्ञानिक मानते हैं कि मरने के समय शरीर से एक तत्त्व निकलता है जो भारयुक्त है । स्वीडिश डा. नेल्स जैकवसन के अनुसार आत्मा का वजन २१ ग्राम है। उन्होंने आत्मा का वजन ज्ञात करने के लिए मृत्यु-शय्या पर पड़े व्यक्तियों को एक अत्यधिक संवेदनशील तराजू पर रखा और जैसे ही उनकी मृत्यु हुई अर्थात् आत्मा शरीर से पृथक् हुई, तराजू की सुई २१ ग्राम नीचे चली गई। अमेरिकन डा० विलियम मैकडूगल ने भी आत्मा के विषय में विभिन्न खोजें की हैं । उन्होंने एक ऐसी तराजू का निर्माण किया जो अशक्त मरीज के पलंग पर लेटे रहने के बावजूद ग्राम के हजारवें भाग तक का वजन बता सकती है। उसने इस भारतौलक खण्ड १७, अंक २ (जुलाई-सितम्बर, ६१) ६७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524567
Book TitleTulsi Prajna 1991 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size5 MB
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