SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मशीन को मरणासन्न रोगी के पलंग से जोड़ दिया। वह मशीन उस व्यक्ति के कपड़े, पलंग, फेफड़ों की सांसों तथा उसे दी जानेवाली दवाइयों का वजन लेती रही। जब तक रोगी जीवित रहा, मशीन की सुई एक स्थान पर स्थिर रही लेकिन जैसे ही रोगी के प्राण निकले सुई पीछे हट गई और रोगी का वजन आधा छटांक कम हो गया । मैकडुगल ने ऐसे प्रयोग कई व्यक्तियों पर किये और उसने निष्कर्ष निकाला कि जीवन का आधारभूत तत्त्व है और वह अति सूक्ष्म है। उसका भी वजन है तथा वही सूक्ष्म तत्त्व आत्मा है । इस प्रकार आज के वैज्ञानिकों ने आत्मा नामक तत्त्व को स्वीकृति दी है और उसको भारयुक्त भी माना है । जैन दार्शनिक आत्मा को अमूर्त मानते हैं और जो अमूर्त तत्त्व होता है वह भारहीन होता है अत: जैन दर्शन के अनुसार आत्मा भारहीन है । आज के वैज्ञानिक जो भार बता रहे हैं वह सूक्ष्म शरीर का है। जैन दर्शन के अनुसार संसारी आत्माएं सूक्ष्म शरीर से युक्त होती हैं । प्रत्येक संसारी आत्मा के साथ दो सूक्ष्म शरीर, तेजस और कार्मण, होते हैं । कार्मण शरीर चतुःस्पर्शी परमाणुओं से निर्मित होने के कारण भारयुक्त है । वैज्ञानिक जो भार बता रहे हैं संभवतः वह तैजस शरीर का है जो अनवरत संसारी आत्मा से युक्त रहता है । अतः सूक्ष्म शरीर के साथ आत्मा का कथंचिद् अभेद भी है । इस आधार पर यह वजन आत्मा का कहा जा सकता है। इसमें किसी भी प्रकार की आपत्ति नही होनी चाहिए। जैन दर्शन ने सांसारिक आत्मा को कथंचित् मूर्त भी माना है । मूर्त पदार्थं भारयुक्त हो सकते हैं । अतएव आत्मा का वजन होता है, यह कथन असमीचीन नहीं है । ६८ अरस - मरुव-मगंधं अव्वत्तं चेदणागुण-मसद्दं । जाण अलिंगहणं जीवमणिछिट्ठसंठाणं ॥ अर्थात् यह जीव रस, रूप, गंध और शब्द रहित अव्यक्त चैतन्य रूप है जो बिना आकार का और इन्द्रियादि से अग्राह्य है । दूसरे शब्दों में न मैं ( आत्मा ) शरीर हूं, न मन हूं, न वचन हूं और न मन, वचन, काय का कारण हूं । मैं इनका भर्त्ता, कर्त्ता और अनुमोदन कर्ता भी नहीं हूं । Jain Education International O ० णाहं देहो ण मणो ण चेव वाणी ण कारणं तेसि । कता ण ण कारयिवा, अणुमत्ता व कसी णं ॥ For Private & Personal Use Only तुलसी प्रज्ञा SXXXXX www.jainelibrary.org
SR No.524567
Book TitleTulsi Prajna 1991 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy