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________________ यही है कि हम अपने शास्त्रीय आहार शास्त्र में आधुनिक वैज्ञानिक तथ्य समाहित करें और अल्पमात्रिक घटकों वाले रुचिकर, अनुकूल एवं हितकारी पदार्थों को सामान्य भक्ष्यता की कोटि में समाहित करें। यही नहीं, किण्वन से प्राप्त हितकारी खाद्यों को भक्ष्यता की कोटि में लाएं। ____ इस दिशा में तीर्थंकर' ने 'आहार विशेषांक' के रूप में एक प्रयोग किया है। लेकिन इसमें वैज्ञानिक आहार शास्त्र की ही प्रमुखता है। यदि इसमें शास्त्रीय आहार शास्त्र के समीक्षापूर्वक सुझाव दिये जाते, तो उनकी उपयोगिता अधिक होती । इससे तो ऐसा प्रतीत होता है जैसे वह औद्योगिक प्रगति और परिवेश को नकार कर हमें बहुत पीछे ले जाना चाहते हों। यह रुख हमें वस्तुस्थिति से विचारपूर्ण समाधानपूर्वक नहीं अपितु पलायन की मनोवृत्ति की ओर प्रेरित करता है । क्या हम कुंदकुंद के मत का अनुसरण न करें जहां उन्होंने श्रावकों को देश, काल, श्रम और क्षमता के आधार पर अन्योन्यनिरपेक्ष उत्सर्ग और अपवाद पर ध्यान न देते हुए विचार-पूर्वक आहार की अनुज्ञा दी है ? सन्दर्भः १. सागार धर्मामृत-कैलाशचन्द्र शास्त्री (अनु.), पृ. ४३-१२५, भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली, १९८१ २. योग विद्या, पृ. ३०, बिहार योग विद्यालय, मुंगेर, नवम्बर, १९७८ ३. जग० शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ-आचार्य राज कुमार जैन ४. तीर्थकर नेमीचंद जैन, इन्दौर, जनवरी, १९८७ ५. तीर्थकर-गणेश ललवानी, पृ.३२, इन्दौर, जनवरी, १९८६ ६. दशवकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन-मुनि नथमल (सं०), पृ. ११३, ११६, तेरापंथी महासभा, कलकत्ता, १९६७ ७. प्रवचनसार-कुंदकंदाचार्य, पृ. २७७, २८१, पाटनी ग्रन्थमाला, मारोठ, १९५६ 10 बम १६, अंक ३, (दिस०, १.) ३७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524564
Book TitleTulsi Prajna 1990 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangal Prakash Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages76
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size5 MB
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