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________________ विविध अभक्ष्य पदार्थ उपरोक्त अभक्ष्यों के अतिरिक्त दौलतराम ने अन्य अनेक अभक्ष्य बताये हैं । इनमें (१) सभी प्रकार के पुष्प, पत्तेवाली सब्जियां, आम की बौर, क्षीरी पदार्थ, हरितकाय एवं अन्य समाहित हैं। शाह ने बाइस अभक्ष्यों की नई सूची दी है । इसमें पूर्वोक्त १८ पदार्थों के साथ (१) खसखस ( २ ) सिंधाड़ा नामक पदार्थ भी समाहित हैं । इन सभी का समाहरण अभक्ष्यों की पूर्वोक्त चार कोटियों में ही हो जाता है । उन्होंने मिलों का मैदा, सिके काजू, डिब्बा बंद दूध, मुरब्बा आदि, कोलड्रिंक्स और पेस्ट्री तथा ऐलोपैथिक दवाओं आदि को भी बहु-आरंभ, जीवघात संभावना एवं चलितरसता के कारण अभक्ष्य बताया है । पुराना गुड़, खांडसारी चलित रसता, सूक्ष्म जीवाणुघात के कारण अभक्ष्य है । रात्रि भोजन के समान प्रायः उन्हीं कारणों से होटल भोजन और अनछने पानी की अभक्ष्यता भी प्रतिपादित की गई है । वर्तमान युग में विभिन्न प्रकार के परिरक्षित एवं प्रक्रमित खाद्य पदार्थों की संख्या बढ़ रही है । इनकी भक्ष्याभक्ष्यता पर विद्वानों ने विचार प्रकट नहीं किये हैं । वे अभी भी बाइस अभक्ष्यों की शास्त्रीय चर्चा करते हैं । वस्तुतः इस वर्गीकरण में नाम - विशेष के स्थान पर जाति विशेष की कोटियां होनी चाहियें। इस आधार पर लेखक ने उनकी चार कोटियां निरूपित की हैं। साधु एवं विद्वज्जनों से इस महत्त्वपूर्ण विषय पर समुचित मार्गदर्शन अपेक्षित है । यह नवीन आहार शास्त्रीय अन्वेषणों पर भी आधारित हो, तो नयी पीढ़ी के लिये कल्याणकर होगा । भक्ष्य पदार्थ विभिन्न अभक्ष्यों की चर्चा के बाद सैद्धांतिक रूप से सामान्य श्रावक के लिये भक्ष्य पदार्थों पर भी कुछ विचार करना आवश्यक है । इनमें प्रथम तो सभी प्रकार के विभिन्न धान्य ( १७, १८ या २४) आते हैं । ये हमारे लिये आटा-चावल ( शकंरीय ), दालें (प्रोटीन) और तिलहन (तेल) की सम्यक् पूर्ति करते हैं । वनस्पतियों में हम संभवतः कोई भी ताजी एवं हरी शाक नहीं खा सकते । पांचवीं प्रतिमा पर तो यह कहा गया है कि सचित्त को विभिन्न विधियों से अचित्त कर खाया जा सकता है, पर इस पूर्व ऐसा कोई नियम नहीं है । इससे ज्ञात होता है कि इसके पूर्व कुछ प्रतिबंधों के साथ सचित्त पदार्थं खाये जा सकते थे । कच्चे दूध और उससे प्राप्त उत्पादों के अभक्ष्य होने से उबले दूध के उत्पादों को हम भक्ष्य मान लेते हैं । फलों में केवल आम, केला और सूखे मेवे ही भक्ष्य के रूप में बचते हैं । सुखाई राई या परिरक्षित सब्जियां भी ऋतु में कौन खाता है ? बाद में वे समय सीमा पार कर अभक्ष्य ही हो जाती हैं । फलतः जैन श्रावक का आहार अधिमात्रिक घटकों से तो पूर्ण सिद्ध होता है, पर वह अल्पमात्रिक एवं अनिवार्य (खनिज, विटामिन, हॉर्मोन आदि ) घटकों की दृष्टि से अपूर्ण रहेगा । साथ ही, फल मेवे पाचन में गरिष्ट हैं, खोवा, मलाई एवं घृत-तैल पक्व पदार्थ भी गरिष्ट होते हैं | श्रावकों का सामान्य व्यवसाय ( आधुनिक अपवादों को छोड़ ) भी श्रम साध्य नहीं होता । अतः अनेक क्षेत्रों के श्रावक मुटापे के रोग उनकी पाचन शक्ति भी क्रमशः दुर्बल होने लगती है । इस स्थिति से से ग्रस्त होते हैं । उबरने का उपाय तुलसी प्रज्ञा ३६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524564
Book TitleTulsi Prajna 1990 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangal Prakash Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages76
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size5 MB
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