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________________ इसके अन्र्तगत मछली, अंडे आदि सभी उच्चतर कोटि के जीवों या उनसे निष्पन्न पदार्थों को मानना चाहिये। इस प्रकार व्यापक रूप से सभी मांसकारी पदार्थ अभक्ष्यता की कोटि में समाहित होते हैं। (८-१२) पंच उदुंबर फल _ पंच उदुंबर फलों (बड़, पीपल, पाकर, ऊमर आदि) की अभक्ष्यता का कारण स्पप्ट है। ये क्षीरी वृक्षों के फल हैं। इन फलों को तोड़ने पर दुग्ध-सम द्रव स्रवित होता है। इन फलों में अनेक प्रकार के जीव आंखों से ही देखे जा सकते हैं। इनमें इनके अतिरिक्त अन्य प्रकार के सूक्ष्म जीव भी संभावित हैं। इन्हें पूर्णतः पृथक् कर साफ भी नहीं किया जा सकता । फिर भी कटु, रुक्ष, कषाय एवं शीतवीर्य होने के कारण द्रव्य-गुण विज्ञानी इनका अनेक औषधियों में प्रयोग करते हैं । सामान्य जैन गृहस्थों में इनका इस रूप में भी उपयोग नहीं किया जाता। (१३) अनंतकायिक या कंदमूल वनस्पति सामान्यतः ये वे वनस्पति हैं जिनके खाद्य-अंश मुख्यतः जमीन के अन्दर पैदा होते हैं पर इनके पौधे जमीन के ऊपर रहते हैं । इसीलिये इन्हें गटन्त भी कहते हैं। इन्हें अनंतकायिक इसलिये कहते हैं कि इनके अनेक भागों से तज्जातीय नये पौधे जन्म ले सकते हैं । इनका प्रत्येक फल अनेक जीवयोनि-स्थान माना जाता है । इनके भक्षण से प्रत्येक वनस्पति की तुलना में अधिक हिंसा संभावित है, अतः इन्हें अभक्ष्य कोटि में माना गया है । सामान्यतः इनमें बाहरी जीवाणु नहीं होते लेकिन वे परिवेश की विकृति से उत्पन्न हो सकते हैं । इस श्रेणी के खाद्यों में मूली, गाजर, अदरख, हल्दी, मूंगफली, आलू, घुइयां, शकरकंद, जमीकंद, चुकंदर, सूरण, शालजम, मुरार, लहसुन और प्याज आदि समाहित होते हैं। इनमें प्याज, लहसुन प्रकृत्या हरी और शुष्क-दोनों प्रकार की मिलती हैं । हल्दी और अदरख को सुखाकर रखा जा सकता है। मूली-गाजर नहीं सुखाये जाते, पर उनको अचार बनाकर परिरक्षित किया जा सकता है। मूंगफली सवल्कल होने के कारण भक्ष्यता की दृष्टि से कभी विवादग्रस्त नहीं रही । शाक-भाजियों के संबंध में तो सचित्त-अचित्त का विचार भी किया गया है पर कंदमूलों के संबंध में यह चर्चा नहीं मिलती। आगमकाल से साधु के लिये और बाद में गृहस्थ के लिये इनकी अभक्ष्यता का विधान है । साध्वी मंजुला ने अचित्त करने पर इनकी सामान्य भक्ष्यता प्रतिपादित की । इस कोटि के पदार्थों को दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है (१) शर्करा या कार्बोहाइड्रेटी (धान्यों के समान आलू, घुइयां, विभिन्न कंद आदि) और अ-कार्बोहाइड्रेटी (मूंगफली, अदरख, हल्दी आदि) । इनमें से अधिकांश का रासायनिक संघटन ज्ञात किया जा चुका है । इनमें शाकों की तुलना में जलांश कम होता है । इनकी सैद्धांतिक अनंतकायता के बावजूद भी खाद्य-घटकीय उपयोगिताएं बहुमूल्य हैं । एक ओर मूली, गाजर, अदरख, प्याज, लहसुन, हल्दी आदि हमारे शरीर के लिये आवश्यक खनिज, विटामिन एवं रोग-प्रतिरोध क्षमताजनक घटक प्रदान करते हैं, वहीं दूसरी ओर आलू, शकरकंद, चुकंदर आदि सरलतः सुपाच्य शर्करायें प्रदान करते हैं। इसीलिये आगमों में खण्ड १६, अंक ३ (दिस०, ६०) २९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524564
Book TitleTulsi Prajna 1990 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangal Prakash Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages76
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size5 MB
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