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________________ (२) (३) आहार - घटकों की लोक मर्यादा होती भक्ष्य है, पर उसी है | गाय का दूध से उत्पन्न मांस अभक्ष्य है । लोक मर्यादा मांस की अभक्ष्यता का समर्थन करती है । (४) मांस जीव के शरीर से प्राप्त होता है, पर प्रत्येक जीव (वनस्पति) का शरीर मांसमय नहीं होता । ( ५ ) यह तामसिक प्रवृत्ति को जन्म देता है । (५) मांसाहार और तामसिक प्रवृत्ति का कोई सरल संबंध नहीं है । पर योगी ऐसा नहीं मानते । ३. प्रभाव दोष ( १ ) मांस भक्षण में द्रव्यहिंसा और भावहिंसा - दोनों होते हैं । (२) मांस भक्षण से इन्द्रियों में मादकता आती है । (३) मांस भक्षण न करने का महाफल होला है । यह न करना चाहिये, न कराना चाहिये और न इसकी अनुमोदना करनी चाहिये । २८ (२) इसमें विद्यमान आहार घटक सुपाच्य होते हैं और उनका जैवमान उच्च होता है । विश्व की अधिकांश जनसंख्या इसे आहार - घटक के रूप में ग्रहण करती है । अतः लोक मर्यादा का प्रश्न नहीं है । Jain Education International (३) (१) मांस भक्षण हिंसापूर्वक होता है । ( २ ) शाकाहार की तुलना में यह दुष्पाच्य है, अतः गरिष्टता का अनुभव होता है । ( ४ ) इससे शरीर तंत्र में कोलस्टेरोल एवं संतृप्त वसीय अमलों की मात्रा अधिक पहुंचती है । इससे रक्तचाप, हृदयरोग, कैंसर, अस्थिरोग, मधुमेह आदि रोगों की बहुत संभावना होती है । (५) इससे विषाक्तता की संभावना रहती है । (६) इसमें रेशे कम होने के कारण मधुमेह नियंत्रण क्षमता नहीं होती । ( ७ ) इसका मूल्य भी अधिक होता है । मांस की अभक्ष्यता की चर्चा में इस शब्द को व्यापक अर्थ में लेना चाहिये । फलतः तुलसी प्रशा For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524564
Book TitleTulsi Prajna 1990 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangal Prakash Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages76
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size5 MB
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