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________________ १. किण्वित मद्य मक्खन चलितरस द्विदल धोलबड़ा २. परिरक्षित अचार-मुरब्बा ३. त्रस / स्थावर जीव घात मांस Jain Education International मधु पंचोदुंबर अनंतकाय बहुबीजक बैंगन ४. विविध विष बर्फ बोला अपक्व लवण इनकी अभक्ष्यता के संबंध में शास्त्रीय एवं वैज्ञानिक चर्चा आगे की जा रही है । किण्वित अभक्ष्य पदार्थ तुच्छ फल अज्ञात फल मृतजाति रात्रिभोजन (१) मद्य एवं मादक पदार्थ वर्तमान में प्रचलित बाइस अभक्ष्यों में प्रायः सभी प्रकार के किण्वित एवं विकृत पदार्थं समाहित होते हैं । इनमें चार महा विकृतियां मुख्य हैं: मद्य, मक्खन, मधु और मांस । इनमें से प्रथम दो मद्य और मक्खन किण्वन से उत्पन्न होते हैं । इनके अतिरिक्त 'नव पदार्थ' में दूध, दही, घृत, गुड़, मिठाई और तैल को भी विकृतियां ही माना है । " इनमें भी दही और घृत किण्वन उत्पाद हैं । अन्यों की विकृतिता विचारणीय है । इन छहों को समय-सीमा में अभक्ष्य नहीं माना जाता। यहां केवल अभक्ष्य विकृतियों पर ही विचार किया जाएगा। इनमें पहला स्थान मद्य का है । वस्तुतः मद्य शब्द से वे सभी पदार्थ ग्रहण किये जाने चाहिये जो उसके समान मादक प्रभाव उत्पन्न करते हैं । इनके अन्तर्गत गांजा, अफीम, चरस तथा एल. एस. डी., हीरोइन आदि नये संश्लेषित पदार्थ भी समाहित होने चाहिये । पुराने समय में इनका समुचित ज्ञान / प्रचार न होने से, संभवतः इनका अल्लेख न हो पाया हो, पर ये सभी मादक और नशीले पदार्थ हैं । शास्त्री " ने इन सभी का अभक्ष्यों की मादक कोटि में समाहार किया है । फिर भी, मद्य में यह विशेषता तो है ही कि यह किण्वन या चलितरसन की क्रिया से प्राप्त होता है जबकि अन्य अनेक मादक पदार्थों के निर्माण में यह क्रिया समाहित नहीं हैं । मद्य या उसके विविध रूपों के विषय में शास्त्रीय एवं वैज्ञानिक जानकारी सारणी ४ में दी गई है । इससे एतद्विषयक प्राचीन एवं नवीन तथ्यों के ज्ञान की तुलना की जा सकती है । मद्य के निर्माण और प्रभावों का शास्त्रीय विवरण उपासकाध्ययन, सागारधर्मामृत, पुरुषार्थ - सिद्धि-उपाय तथा श्रावक धर्म प्रदीप आदि में पाया जाता है । वैज्ञानिकों ने भी इस सम्बन्ध में पर्याप्त अध्ययन किया है । इससे पता चलता है कि विभिन्न प्रकार के मद्यों का निर्माण कुछ विशिष्ट परजीवी वनस्पतियों की कोशिकाओं की विकास प्रक्रिया के फलस्वरूप होता है । यह विकास प्रक्रिया एक रासायनिक क्रिया है जिसके कारण ये कोशिकायें अपने विकास हेतु शर्करामय पदार्थो को विदलित करती हैं । इसके फलस्वरूप मद्य द्वितीयक उत्पाद के रूप में प्राप्त होता है । इस प्रक्रिया में २६ तुलसी प्रशा For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524563
Book TitleTulsi Prajna 1990 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangal Prakash Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size4 MB
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