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________________ मद्य मधु ने हिम तथा मृत्तिका जाति के पदार्थ छोड़ दिये हैं। इसके बदले 'घोल बड़ा लिया है जो द्विदल या चलितरस का ही एक रूप है। इन अभक्ष्यों की जैन संप्रदाय में पर्याप्त मान्यता है । इनका आधार उपरोक्त पांच आधारों में से एकाधिक है। सारणी ३ : विभिन्न प्रन्यों में अभक्ष्यों के रूप १. धर्मसंग्रह" जीव विचार प्रकरण दौलतराम" अनंतकाय विचार२० १-४. चार विकृतियां चार विकृतियां चार विकृतियां चार विकृतियां मद्य मद्य मद्य मांस मांस मांस मांस मधु मधु मधु मक्खन मक्खन मक्खन मक्खन ५-६. पांच उदुंबर फल पांच उदुंबर फल पांच उदुंबर फल पांच उदुंबर फल १०. बर्फ बर्फ बर्फ ११. ओला ओला ओला ओला १२. विष विष विष विष १३. रात्रि भोजन रात्रि भोजन रात्रि भोजन रात्रि भोजन १४. बहुबीजक बहुबीजक बहुबीजक बहुबीजक १५. अज्ञात फल अज्ञात फल अज्ञात फल अज्ञात फल १६. अचार मुरब्बा अचार मुरब्बा अचार मुरब्बा अचारादि १७. अनंतकायिक अनंतकाय कंदमूल अनंतकाय बेंगन बेंगन १६. चलित रस चलित रस चलित रस चलित रस २०. आमगोरस द्विदल संपृक्त द्विदल २१. तुच्छ फल तुच्छ फल तुच्छ फल तुच्छ फल २२. मृत्जाति कच्ची मिट्टी मृत्जाति २३. - अपक्व लवण २४. - धोलबड़ा धोलबड़ा २५. गारी यहां यह भी स्पष्ट करना चाहिये कि दिगम्बर ग्रन्थों में अनेक कोटियों के पर्याप्त उदाहरण नहीं पाये जाते । साथ ही, इनके अनेक नामों से ऐसा लगता है कि ये समयसमय पर जोड़े गये हैं। यही कारण है कि अनेक नामों से पुनरावृत्ति दोष का आभास होता है। उदाहरणार्थ ---चलित रस कोटि में मद्य, मक्खन, अचार-मुरब्बा एवं द्विदल की कोटियां समाहित हो जाती हैं । बहुबीजक में बैंगन आ जाता है। पुनरावृत्तियां सुधारी जानी चाहिये । वर्तमान युग में इन अभक्ष्यों पर पुनर्विचार को आवश्यकता है। नवयुग में अभक्ष्यों को कुल चार कोटियों में वर्गीकृत किया जा सकता है : खण्ड १६, अंक २ (सित०, ६०) बेंगन १८. बगन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524563
Book TitleTulsi Prajna 1990 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangal Prakash Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size4 MB
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