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________________ दैवी-विद्याएं भी लोगों को सिद्ध होती थीं। तिरस्कारिणी विद्या की सिद्धि से अदृश्य रहने की शक्ति प्राप्त होती थी और अपराजिता विद्या के बल से अजेयता की उपलब्धि प्राप्त हो सकती थी।५ । कालिदास के समय में वृक्ष-दोहद से सम्बन्धित लोक-विश्वास व्यापक था। मालविकाग्निमित्र में अशोक-दोहद मुख्य घटना है। मालविका के पादापात से अशोक में पांच रात्रियों से भी कम समय में ही कलियां फूट आती हैं।६ अशोक-दोहद की घटना को हेनरी डब्ल्यू बेल्स ने लोक-वार्ता का तत्त्व स्वीकार किया तथा बाल्टर रूबेन ने इसे वृक्षपूजा की पुरातन परम्परा से जोड़ा है ।२७ । कोई भी कार्य आरम्भ करने से पूर्व लोग ज्योतिषी से शुभ मुहूर्त पूछते थे। दैविक-जीवन में पाठ-पूजा करते थे, प्रासाद में लड्डू आदि बांटे जाते थे।२९ राज-प्रासाद की चाहर-दीवारी में रहने वाले भी लोक-जीवन के प्रभाव से अछूते नहीं रह सकते हैं। लोक-प्रचलित विश्वास वहां भी येनकेन प्रकारेण पहुंच जाते हैं । लोक-विश्वासों में उस समय शाप, शकुन, ज्योतिष, पाठ-पूजा, भाग्य, कर्म-विपाक, पुण्य, तंत्र-मंत्र, जादू-टोना, अलौकिक तत्त्व, स्वप्न, भूत-प्रेत, भविष्यवाणी, पूर्वजन्म आदि प्रचलित थे। इन विश्वासों के आधार पर उस समय के लोक-जीवन की छवि नाटककार ने पेश की है। प्राय: ये सारे विश्वास आज भी हमारे बीच प्रचलित हैं। ये विश्वास समाज की ऐसी प्रेरक शक्ति है, जिससे मनुष्य आशावादी होकर कर्म प्रवृत्त होता है। संदर्भ: १. ऋग्वेद--११८६५, ५॥३॥४१, ७।३३।११, २३११४ २. संस्कृत नाटक में अतिप्राकृत तत्व, पृ० १५८ ३. मालविका-'अपि च दक्षिणेतरमपि मे नयनं बहुशः स्फुरति'-कालिदास ग्रंथावली, मालविकाग्निमित्रम्, पंचम अंक, पृ० ३४३ ४. प्रथमा–सखि मदनिके ! अपूर्वमिदं राजकुलं प्रविशन्त्याः प्रसीदति मे हृदयम्, ___ वही, पृ० ३४५ ५. का० अं०, अभिशा०-५२१६, पृ० ११ ६. मनीरथाय नाशंसे कि बाहो स्पन्दसें वृथा। पूर्वावधीरितं श्रयो युःख हि परिवर्तते ॥ वही, ७३१३, पृ० १३३ ७. शकुन्तला-(निमित्तं सूचयित्वा) अहो कि मे वामेतर नयनं विस्फुरति । का० ग्रं०, अभि० शा०, पंचम अंक, प०८४ ८. "भवितव्यानां द्वाराणि भवन्ति सर्वत्र", का०प्र०, अभि०शा०, प्रथम अंक, पृ० ११, भवितव्यता खलु बलवती, का० ०, अभि. शा०, १० अं०, पृ० १०६ ६. वैशानख-इदानीमेव दुहितर शकुन्तलामतिथि सत्काराय नियुज्य वैवमस्याः प्रतिकूलं शमयितुं सोमतीर्थ गतः । का० प्र०, अभि. शा०, प्रथम अंक, पृ० ६ ४४ तुलसी प्रशा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524562
Book TitleTulsi Prajna 1990 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size4 MB
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