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जिन चरित्र :-जिन चरित्र (पूरा) वेढा नामक छंद में रचा गया है। चौबीस तीर्थंकरों का जीवनवृत्त इसमें गुम्फित किया गया है। विवेचना पद्धति में यहां पश्चानुपूर्वी क्रम का आलम्बन लिया गया है। इसलिए सर्वप्रथम श्रमण भगवान् महावीर का जीवन चरित्र सुन्दर साहित्यिक एवं आलंकारिक भाषा में चित्रित किया गया है। स्वप्न, स्वप्न फल, इन्द्रागमन, गर्भापहार, अट्टणशाला, जन्मोत्सव, दीक्षा, चतुर्मास, अन्तकृत भूमि और परिनिर्वाण आदि का विभिन्न संदर्भो पर विस्तृत विवेचन किया गया है।
बुद्ध से जन्म तुलना :-भगवान महावीर के जीवन प्रसंग की तुलना बौद्ध ग्रंथ 'ललित विस्तरा' में वर्णित बुद्ध की जन्म घटना से की जा सकती है। कल्पसूत्र के अनुसार इन्द्र मन ही मन पर्यालोचन करता हुआ कहता है कि अतीत में न कभी ऐसा हुआ है, वर्तमान में न कभी ऐसा होता है और न भविष्य में कभी ऐसा होगा । अरहन्त, चक्रवर्ती, बलदेव और वासुदेव आदि अन्त्यकुल, प्रान्तकुल, कृपणकुल, दरिद्रकुल, तुच्छकुल, भिक्षुककुल में न कभी उत्पन्न हुए हैं और न कभी उत्पन्न होते हैं और न कभी उत्पन्न होंगे। यह एक ऐतिहासिक और पारम्परिक निश्चित तथ्य है कि वे उग्रकुल, भोगकुल, राजन्यकुल, क्षत्रियकुल, इद्रवाकुल और हरिवंश आदि उत्तम कुलों में अतीत में पैदा हुए थे, वर्तमान में पैदा होते हैं और भविष्य में उत्पन्न होंगे । यही तथ्य ललित विस्तरा में मिलता है-"चाण्डाल कुल, वेणूकार कुल, रथकार कुल, पुरुकस कुल जैसे हीनकुलों में उत्पन्न नहीं होते। वे या तो ब्राह्मण कुल में जन्म लेते हैं या क्षत्रिय कुल में पैदा होते हैं।"" दीर्घनिकाय में क्षत्रिय की श्रेष्ठता का प्रतिपादन करने वाली जो सनत्कुमार ने गाथा कही उसका भगवान् बुद्ध ने अनुमोदन करते हुए कहा था-'यह गाथा बहुत सार्थक है न कि निरर्थक है ।" बृहदारण्यक उपनिषद् में भी यही उल्लेख मिलता है.---"क्षत्रिय में उत्कृष्ट कोई जाति नहीं है।"५ राजसूय यज्ञ विद्या में भी ब्राह्मण नीचे बैठकर क्षत्रिय की उपासना करता है।
पञ्च कल्याण :- आपका जन्म, दीक्षा, कैवल्य आदि पञ्च कल्याण हस्तोतरा नक्षत्र में हुए। परिनिर्वाण स्वाति नक्षत्र में हुआ था। पांच कल्याण का वर्णन ठाणांग सूत्र में और पञ्चाशकशास्त्र में भी मिलता है ।
__भगवान महावीर का जीवन वृत्त आचार चूला से मिलता-जुलता है। पुरुषादानीय पार्श्वनाथ, अर्हत् अरिष्टनेमि और ऋषभदेव इनकी प्रमुख-प्रमुख घटनाओं का उल्लेख है। शेष तीर्थंकरों के जीवन व्याख्या में तो मात्र पांच कल्याण और अन्तकृत भूमिका आदि का ही वर्णन किया गया है। ऋषभदेव का जीवन वृत्त जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति से मिलता-जुलता है। इसमें स्वप्न फल के पादकों का उल्लेख नहीं किया गया है क्योंकि स्वप्नों का फल स्वयं नाभि राना ने घोषित किया था। पुरुषों की बहत्तर कलाओं एवं स्त्री की चौंसठ कलाओं का विशेष उल्लेख किया गया है।
स्थविरावली :- भगवान महावीर के नौ गण और इन्द्रभूति आदि ११ गणधरों का तथा उनके सहवर्ती शिष्यों का इसमें विस्तृत विवेचन किया गया है। भगवान्
खण्ड १५, अंक ४ (मार्च, ९०)
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