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एक उपलब्धि साध्वी आनन्द श्री
युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ के अपनी जन्म भूमि में दो दिवसीय स्वल्प प्रवास में मैंने युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ को सूक्ष्मता से देखा। युवाचार्य के रूप में जन्म भूमि में आपका पदार्पण प्रथम था, उस समय सात साध्वियों के साथ मैं भी थी। इस निकटता में उनके विराट व्यक्तित्व, गहराई, सौहार्द एवं आत्मीयता की प्रवाहित सरिता को देखकर मैं मन ही मन श्रद्धावनत थी। उनकी अनाग्रह वृत्ति ने मेरे नर्वस मन की कई उलझी ग्रन्थियों को सुलझा दिया। साधना, संस्कृति और साहित्यमयी त्रिवेणी के उद्गम आपके बारे में क्या लिखा जाये, यह प्रश्न चिह्न मेरे सम्मुख है । समाधान हेतु इतना ही कह सकती हूँ :
तुम एक गुल हो,
तुम्हारे जलवे हजार हैं। तुम एक साज हो,
तुम्हारे नगमें हजार हैं। जन्म-भूमि के प्रांगण में आपका वह प्रवचन हृदय को भाव विभोर बनाने वाला ही नहीं वरन् दर्शन व विज्ञान के साथ अध्यात्म की सरस व्याख्या भी मन को तरोताजा बनाने वाली थी। प्रवचन के अन्तर्गत आपने फरमाया--"कई लोगों ने मेरे से कहा-आप अमुक व्यक्ति को साधु-सन्तों के दर्शन का नियम दिलायें। मैंने उनसे कहा--मैं उन्हें स्वदर्शन के बारे में उपदेश व बल दे सकता हूं। मेरा विश्वास है कि ऐसा प्रयोग करने वाले संत दर्शन किये बिना रह नहीं पायेंगे। मेरे दृष्टिकोण से प्रेक्षा-ध्यान एक मनोवैज्ञानिक पद्धति है । जिसके द्वारा समाज में विकास के अनेक आयाम खोले जा सकते हैं।"
युवाचार्य महाप्रज्ञ के प्रति
-कन्हैयालाल फूलफगर मौन हो गये ग्रन्थ जहां पर,
तुमने दी फिर वाणी। गुंजेगी वह दिग् दिगन्त में,
बन कर के कल्याणी। श्रद्धा और समर्पण कोई,
सीखे पास तुम्हारे । कोटि-कोटि वन्दन अभिनन्दन,
ओ जग के उजियारे ॥
खण्ड ४, अंक ७-८
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