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हे योगिराज ! शत-शत प्रणाम
- लूनकरण 'विद्यार्थी'
पुंज ! हे योगिराज ! शत-शत प्रणाम । विश्व, यह आत्मज्ञान से सफल काम ॥ (१)
आचार्य भिक्षु का शासन यह, आचार्यों की सुन्दर माला जो करती रहती अन्ध जगत में, ज्योतिकिरण का उजियाला । हे युवाचार्य तुझको पाकर, खिल गये धर्म के पुण्य धाम, हे महाप्रज्ञ ! हे ज्योतिपुंज ! हे योगिराज ! शत-शत प्रणाम ।। (२)
प्रेक्षा के शिविर सुखद लगते, जन-जन अनुप्राणित होता है, "अर्हम्" "अर्हम्" ध्वनि गूंज रही, अज्ञान तिमिर को खोता है । तुलसी वाणी के व्याख्याता, तेरा हो जग में अमर नाम, हे महाप्रज्ञ ! हे ज्योतिपुंज ! हे योगिराज ! शत-शत
प्रणाम ||
हे महाप्रज्ञ ! हे ज्योति तेरे चिन्तन से हुआ
(३) गम्भीर तुम्हारी वाणी है, अनुभव का निर्झर जड़ चेतन जग के सूक्ष्म भेद की ज्ञान कथायें जिसने अमृत रसपान किया, उसको न सताता कुटिल काम, हे महाप्रज्ञ ! हे ज्योतिपुंज ! हे योगिराज ! शत-शत प्रणाम ||
नवयुग प्रवाहिनी के वाहक, भव्य पुरातन विशद ज्ञान, भारत वसुन्धरा के तट पर लाते मुनिवर स्वर्णिम विहान । ओ युग प्रधान के अनुगामी ! निज ध्यान मग्न दिग्पालयाम, हे महाप्रज्ञ ! हे ज्योतिपुंज ! हे योगिराज ! शत-शत
प्रणाम ||
बहता है, कहता है ।
(५)
सुनकर गुरुवर की सुखद घोषणा, जन मानस अति हर्षाया, शासन का सविता चमकेगा, विश्वास हृदय में सरसाया । अनवरत रहेगा चिर प्रकाश होगी न धर्म की कभी शाम, हे महाप्रज्ञ ! हे ज्योतिपुंज ! हे योगिराज ! शत-शत प्रणाम || (६)
अनुपम भावों से भरे हृदय से, श्रद्धा हे पथदर्शक ! तेरे चरणों में, तुम तपो धरा पर प्रखर किरण, हे महाप्रज्ञ ! हे ज्योतिपुंज ! हे तेरे चिन्तन से हुआ विश्व यह,
खण्ड ४, अंक ७-८
सुमन चढ़ाते हैं, अपना शीश झुकाते हैं । तुलसी रवि तेरा पथ ललाम, योगिराज ! शत-शत प्रणाम । आत्म ज्ञान से सफल काम ॥
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