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________________ युवाचार्यवर द्वारा लिखित "मैं, मेरा मन, मेरी शान्ति" "मन के जीते जीत" "चेतना का कारोहण" "महावीर की साधना का रहस्य" आदि योग सम्बन्धी ग्रन्थ अत्यन्त लोकप्रियता प्राप्त कर चुके हैं। युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ वि० सं० १९७७ में राजस्थान के एक छोटे-से कस्बे 'टमकोर' में जन्मे, दस वर्ष की वय में तेरापन्थ के अष्टामाचार्य श्री कालूगणी के करकमलों से दीक्षित हुए और उन्हें शिक्षा-गुरु के रूप में मिले कुशल जीवन-शिल्पी आचार्यश्री तुलसी। हीरे की मूल्यवत्ता उसकी काट-छाँट और तराश पर निर्भर करती है । सही ढंग से तराशे हुए हीरे के भीतर से उठने वाली चमक के परावर्तन से उसकी चमक शतगुणितसहस्रगुणित हो जाती है और उसी के आधार पर उसका मूल्य-निर्धारण होता है । युवाचार्य श्री जिस दिन आचार्य श्री तुलसी की सन्निधि में आये थे, वे सचमुच एक बिना तराशे हुए हीरे थे। आज उनके व्यक्तित्व और कर्तृत्व की प्रत्येक चमकपूर्ण रश्मि में महान् सृजनधर्मी आचार्य तुलसी की अद्वितीय सृजनक्षमता परिलक्षित होती है । युवाचार्य श्री प्रारम्भ से ही आचार्य श्री तुलसी के विचारों के प्रशस्त भाष्यकार, उनके अनन्य सहयोगी तथा तेरापंथ की प्रगति के हर चरण से संपृक्त रहे हैं। उन्होंने चार वर्ष तक निकाय-सचिव के रूप में संघ को अपनी विनम्र सेवाए प्रदान की। वि० सं० २०३५ गंगाशहर चातुर्मास में आचार्य श्री तुलसी ने उन्हें 'महाप्रज्ञ' विशेषण से अलंकृत किया और मर्यादा महोत्सव के ऐतिहासिक अवसर पर उन्हें युवाचार्य पद से विभूषित कर अपना 'उत्तराधिकारी घोषित किया। आचार्य श्री के इस सामयिक निर्णय में सन्निहित है अतीत का गौरव, वर्तमान का समाधान और भविष्य की उज्ज्वल संभावनाए। महाप्रज्ञ श्री को युवाचार्य के रूप में प्राप्त कर केवल जैन समाज ही नहीं अपितु समग्र अध्यात्म-जगत् गौरवान्वित हुआ है तथा आचार्य श्री तुलसी जैसे महान आचार्य के महान् उत्तराधिकार को प्राप्त कर स्वयं युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ भी धन्यता का अनुभव कर रहे हैं। महाप्रज्ञ श्री का नया दायित्व समग्र विश्व के लिए, अध्यात्म के नये दायरे और नये आयाम उद्घाटित करे तथा महान् अध्यात्म प्रचेता आचार्य श्री तुलसी और युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ की समन्वित शक्ति अध्यात्म की धारा में त्राण खोजने वाली सम्पूर्ण मनुष्य जाति का युग-युग तक पथ-दर्शन करती रहे, यही मंगल-कामना है। ३८२ तुलसी-प्रज्ञा
SR No.524517
Book TitleTulsi Prajna 1979 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size12 MB
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