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________________ न कहीं ओर है न छोर । इसीलिये अनेक विद्वान् उन्हें चलता-फिरता विश्वकोश (Encyclopaedia ) कह देते हैं । राष्ट्रकवि रामधारीसिंह दिनकर ने तो उन्हें भारत का दूसरा 'विवेकानन्द' कहा था । - भारतीय और पश्चिमी दर्शनों की मीमांसा करते हुए जब वे किसी भी दार्शनिक, तात्त्विक या सैद्धान्तिक पहलू को विश्लेषित करते हैं, तब ऐसा लगता है मानो सम्पूर्ण वाङमय उनके सामने बिछा पड़ा है । उनकी सन्निधि में आकर जहाँ देश-विदेश के शीर्षस्थ विद्वान् धन्यता का अनुभ करते हैं, शोध -विद्यार्थी नया मार्गदर्शन प्राप्त करते हैं, वहाँ शोध विद्वान् भी उनसे नई अन्वेषणात्मक दृष्टि प्राप्त कर अपनी अनुसन्धानात्मक प्रवृत्तियों में नये उन्मेष लाते हैं । वे महान् दार्शनिक, आशुकवि, ओजस्वी वक्ता और सशक्त लेखक हैं । चिन्तन की मौलिकता उनके साहित्य की अपनी विशेषता है । "जैन दर्शन मनन और मीमांसा" "जैन न्याय का विकास" "अहिंसा तत्व दर्शन" “भिक्षु विचार दर्शन" आदि उनकी महत्त्वपूर्ण कृतियां जैन दर्शन को प्रतिनिधि ग्रन्थों क े रूप में विद्वत् जगत् में समादरणीय स्थान प्राप्त कर चुकी हैं। युगप्रधान आचार्य श्री तुलसी के वाचना प्रमुखत्व में युवाचार्य श्री द्वारा सम्पादित आगम ग्रन्थों ने भारतीय और पश्चिमी विद्वानों की दृष्टि में अतिरिक्त मूल्यवत्ता और प्रतिष्ठा प्राप्त की है । वैज्ञानिक नहीं हैं, पर वैज्ञानिक दृष्टि उन्हें उपलब्ध है । इसीलिए बनी बनायी राहों पर चलना, सहारों पर जीना और दूसरों प्रकाश से अपने पथ को आलोकित करना उन्हें कभी नहीं भाया । उनका जीवन सूत्र है - "अध्यणा सच मेसेज्जा" स्वयं सत्य की खोज करो । सत्य की खोज के लिए ही वे अनवरत अध्यात्म-साधना के प्रयोगों की राहों से गुजरते रहे हैं और चेतना की ऊंचाइयों को छूते रहे हैं । वे जागृत चेतना के उपासक हैं । अन्तः जागरण से फलित होने वाली शान्ति और समाधि के समर्थक हैं । इसीलिये वे जीवन में मूर्च्छा और जड़ता लाने वाले प्रयोगों से निष्पन्न शान्ति और समाधि को कभी मान्यता नहीं देते । साधना के नाम पर असंयम को बढ़ावा देने वाली तथा मुक्त भोग को मान्यता प्रदान करने वाली विचारधारा के प्रति अपनी नितान्त असहमति प्रकट करते हैं । विगत एक दशक से वे ध्यान-योग की विशिष्ट साधना एवं प्रयोगों में सलग्न हैं । ध्यानयोग को व्यापकता प्रदान करते हेतु, आचार्य श्री के नेतृत्व में प्रेक्षा ध्यान शिविरों का संचालन कर रहे हैं । इन शिविरों के माध्यम से हजारों युवा प्रतिभाएं धर्म और अध्यात्म की ओर आकर्षित हो रहीं हैं । उन्होंने अध्यात्म को जीवन-दर्शन के रूप में प्रस्तुत किया है, जिसके आलोक में विश्व - चेतना युगीन समस्याओं का समुचित समाधान प्राप्त कर सकती है । खण्ड ४, अंक ७-८ ३८१
SR No.524517
Book TitleTulsi Prajna 1979 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size12 MB
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