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नया दायित्व, नये दायरे : युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ
साध्वी कनकधी
__ जैन आगमों के पारगामी मनीषी, भारतीय विद्याओं के मर्मज्ञ विद्वान्, महान दार्शनिक, अध्यात्म और विज्ञान के समन्वय सेतु, युग प्रधान आचार्य श्री तुलसी के एक विशिष्ट अन्तेवासी जो महाप्रज्ञ मुनि श्री नथमल के नाम से सुविश्रुत हैं, वे अब तेरापंथ धर्म-संघ के युवाचार्य बन गए हैं । अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य श्री तुलसी ने अपना उत्तराधिकार प्रदान करते हुए उनका नाम भी परिवर्तित कर दिया । फलतः अब महाप्रज्ञ मुनि श्री नथमल 'युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ" के नाम से सम्बोधित होंगे।
युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ का व्यक्तित्व हंस-मनीषा, सूक्ष्मग्राही मेघा, सृजनात्मक प्रतिभा और ऋतंभरा प्रज्ञा की अद्वितीय समन्विति है।
उन्हें चिन्तन की ऊंचाई और ज्ञान की गहराई सहज प्राप्त है। विनम्रता, सहजता और समर्पण उनके परिपूर्ण एवं अखण्ड व्यक्तित्व के प्रमुख घटक तत्त्व रहे हैं ।
युवाचार्य श्री को पुरुष-सुलभ पराक्रम सहज उपलब्ध है । पुरुषार्थ की लौ अनवरत प्रखरता से प्रज्वलित रहती है उनके अंतस में। फिर भी वे अपने कृतित्व के अहं से सदा अस्पृष्ट रहे हैं । वे नारी नहीं हैं, पर नारीत्व के घटक तत्त्व श्रद्धा, समर्पण और मृदुता उन्हें उपलब्ध हैं । युवाचार्य श्री के शब्दों में--
“मैं अद्धनारीश्वर की स्थिति में हूँ। मुझे नारी-सुलभ मृदुता और पुरुष-सुलभ पराक्रम--ये दोनों उपलब्ध हैं। इनका समन्वय मुझे कठोरता और अहंकार इन दोनों से बचा रहा है । यह मेरे लिये संतोष का विषय है।"
वैसे किसी भी व्यक्ति की महत्ता को जान पहचान पाना सरल कार्य नहीं हैं, फिर भी युवाचार्य श्री के निकट सम्पर्क, प्रवचन-श्रवण तथा उनकी साहित्यिक कृतियों के अध्ययन-अनुशीलन से ऐसा ज्ञात होता है, कि वे वर्तमान युग-संध्या के जाज्वल्यमान नक्षत्र हैं, भारतीय अध्यात्म परम्परा के आर और पार को उद्भासित करने वाले निष्प्रकम्प दीप हैं
और मनुष्य के अंतस् में छिपी लक्ष-लक्ष जीवनी शक्तियों को उद्घाटित करने वाले ऊर्जापुञ्ज हैं।
जीवन और जगत् के अज्ञात रहस्यों के उद्घाटन में अहर्निश निरत उनकी सृजनात्मक प्रतिभा आज के बौद्धिक युग का एक महान् आश्चर्य है । उनके अगाध ज्ञान सागर का
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तुलसी-प्रज्ञा